झुग्गी झोपड़ी में रहने वाले लोगों को किन समस्याओं से दो-चार होना पड़ता है माटी वाली पाठ के संदर्भ में बताइए
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नामी-गिरामी और तड़क-भड़क वाले पब्लिक स्कूलों के बीच एक स्कूल ऐसा भी चल रहा है, जिसमें पढ़ने वाले बच्चे बड़ी कालोनियों या कोठियों में नहीं रहते। बल्कि अभिभावकों के साथ झुग्गी-झोपड़ियों में रहते हैं। दिन भर काम करते हैं और शाम को निर्धारित समय पर चार बजे स्कूल पहुंच जाते हैं। यह स्कूल बजरंग आश्रम में चल रहा है और इसकी प्रिंसिपल और टीचर सब कुछ एक ही महिला हैं। नाम है सुमन श्रीवास्तव। व्यक्तिगत कारणों से सरकारी और प्राइवेट स्कूल में न जाने वाले बच्चों में शिक्षा की अलख जगा रही हैं। जो बच्चे पढ़ाई के नाम पर क.ख.ग भी नहीं जानते थे, वह अब बिना किसी बड़े या महंगे स्कूल में गए, पढ़ना और लिखना सीख गए हैं।
गलियों में घूमने वाले व झुग्गी झोपड़ियों में रहने वाले बच्चों की शिक्षा की तरफ न तो उनके माता पिता ध्यान देते हैं और न ही कोई और। ऐसे बच्चे अक्सर शिक्षा से वंचित रह जाते हैं। लेकिन ऐसे बच्चों की शिक्षा में रुचि बने व पढ़ना लिखना सीख जाएं, इसके लिए सुमन श्रीवास्तव प्रयास कर रही हैं। जरूरतमंद बच्चों को ट्यूशन देने का काम सात माह पहले शुरू किया था। वे झुग्गियों में जाकर बच्चों के माता-पिता से मिली। अभिभावकों ने बच्चों को पढ़ाने से इंकार कर दिया। कोशिशों के बाद तीन बच्चे ट्यूशन पर आने लगे। जिसके बाद धीरे-धीरे संख्या बढ़ती गई। फिलहाल 20 बच्चों को वहां पर मुफ्त में पढ़ाई कराई जाती है। सुमन बजरंग आश्रम में प्रतिदिन बच्चों को तीन घंटे मुफ्त में पढ़ाती हैं। वहीं उन्हें पढ़ने व लिखने के लिए जरूरी सामान भी मुहैया करवाया जाता है। ताकि उन्हें पढ़ाई लिखाई में कोई समस्या न आए।