झूम किस प्रकार की कृषि है
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झूम कृषि एक आदिम प्रकार की कृषि है जिसमें पहले वृक्षों तथा वनस्पतियों को काटकर उन्हें जला दिया जाता है और साफ की गई भूमि को पुराने उपकरणों (लकड़ी के हलों आदि) से जुताई करके बीज बो दिये जाते हैं। फसल पूर्णतः प्रकृति पर निर्भर होती है और उत्पादन बहुत कम हो पाता है।
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ʜᴏᴘᴇ ɪᴛ ʜᴇʟᴘs ʏᴏᴜ
ᴘʟᴇᴀsᴇ ғᴏʟʟᴏᴡ ᴍᴇ
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झूम कृषि एक प्रकार की स्थानांतरित कृषि है
जिसमे पहले वनस्पतियों व वृक्षों को काटकर जला दिया जाता है तथा साफ की गई भूमि को पुराने उपकरणों से जुताई की जाती है व बीज बो दिए जाते है।
- झूम कृषि में कुछ वर्षों तक मिटटी में उर्वरता रहती है , इस जमीन पर खेती की जाती है फिर इस भूमि को छोड़ दिया जाता है जिस पर पेड़ पौधे उग आते है।
- किसी और जगह जंगल में फिर भूमि ढूंढ़कर साफ करके कृषि के लिए नई भूमि प्राप्त की जाती है। उस नई भूमि पर भी कुछ वर्षों ही खेती की जाती है।
- इस तरह से यह एक स्थानांतरित कृषि है । उसमे थोड़े थोड़े समय के अंतर में खेत बदल कर कृषि की जाती है।
- इस प्रकार की कृषि भारत की पूर्वोत्तर पहाड़ियों में आदिम जातियों द्वारा की जाती है।
- श्री लंका में इस कृषि को चेना, रोडेशिया में मिल्पा तथा हिंदेसिया में लदांग कहते है।
- ऐसा दावा किया गया है कि झूम कृषि के कारण बहुमूल्य प्राकृतिक संसाधनों की हानि हुई है।
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