झोपडी़ के द्वार पर बाप और बेटा दोनों एक बुझे हुए अलाव के सामने चुपचाप बैठे हुए हैं और अन्दर बेटे की जवान बीबी बुधिया प्रसव-वेदना में पछाड़ खा रही थी। रह-रहकर उसके मुँह से ऐसी दिल हिला देने वाली आवाज़ निकलती थी, कि दोनों कलेजा थाम लेते थे।
गद्यांश की व्याख्या कीजिये
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झोपडी़ के द्वार पर बाप और बेटा दोनों एक बुझे हुए अलाव के सामने चुपचाप बैठे हुए हैं और अन्दर बेटे की जवान बीबी बुधिया प्रसव-वेदना में पछाड़ खा रही थी। रह-रहकर उसके मुँह से ऐसी दिल हिला देने वाली आवाज़ निकलती थी, कि दोनों कलेजा थाम लेते थे।
संदर्भ : यह गद्यांश मुंशी प्रेमचंद द्वारा रचित कहानी ‘कफन’ से उद्धृत किया गया है इस गद्यांश में और इस कहानी के माध्यम से मुंशी प्रेमचंद्र ने निर्धनता के कारण उपजी संवेदनहीनता को प्रकट किया है लेखक कहते हैं कि झोपड़ी के दरवाजे पर
व्याख्या : लेखक कहते हैं, पिता और पुत्र यानी घीसू और उसका पुत्र माधव दोनों झोपड़ी के दरवाजे पर बैठे एक बुझे हुए अलाव के सामने चुपचाप बैठे हैं। जबकि अंदर माधव की पत्नी बुधिया प्रसव के कारण दर्द से छटपटा रही है, वह चिल्ला रही है लेकिन उन दोनों के ऊपर बुधिया की वेदना का कोई असर नहीं हो रहा और वह और आप बुझे हुए अलाव में भुने हुए आलू खाने में व्यस्त हैं। हालांकि बुधिया की वेदना भरी आवाज से दोनों का दिल कांप जाता था, लेकिन उसके पास जाकर उसकी देखभाल करने की पहल किसी ने नही की और वे लोग बने हुए आलू खाने में ही व्यस्त रहे, यह संवेदनहीनता की पराकाष्ठा थी।
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Answer
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Explanation:
ghopde ke dwar par bap aur bete