झोपडी व महाल संवाद लेखन
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सेठ है , शोषक है , नामी गलाकाटू है ,
गालियाँ भी सुनता है , भारी थूकचाटू है |
चोर है , डाकू है , झूठा – मक्कार है ,
क़ातिल है , छलिया है , लुच्चा और लभार है |
जैसे भी टिकट मिला , जहाँ भी टिकट मिला ,
शासन के घोड़े पर वही सवार है |
उसी की जनवरी , उसी का अगस्त है ,
बाक़ी सब दुखी है , बाक़ी सब मस्त है |
गुंडों की है चौकड़ी , गुंडा ही मस्त है ,
उन्हीं की है जनवरी , उन्हीं का अगस्त है |
महल आबाद है , झोपड़ी उजाड़ है ,
गरीब की बस्ती में उखाड़ है , पछाड़ है |
मंत्री ही सुखी और मंत्री ही मस्त है ,
उसी की जनवरी , उसी का अगस्त है |
– महान कवि बाबा नागार्जुन
[ वैद्यनाथ मिश्र ]
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