झारखंड के हिन्दी उपन्यास में उद्भव और विकास पर प्रकाश डाले
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हिंदी उपन्यास का उद्भव एवं विकास
हिंदी उपन्यास के उद्भव एवं विकास पर अगर हम दृष्टि डालें तो इसको कई चरणों में विभाजित कर सकते हैं।
प्रथम चरण — हिंदी उपन्यास का प्रथम चरण भारतेंदु युग माना जाता है। इस काल में हिंदी में उपन्यासों का आरंभ हो गया था। अगर किसी हिंदी उपन्यास को हिंदी के प्रथम उपन्यास का दर्जा दें तो ‘लाला श्रीनिवास दास’ का ‘परीक्षा गुरु’ हिंदी का पहला और मौलिक उपन्यास माना जाता है। उसके अतिरिक्त ‘श्रद्धा राम फिल्लौरी’ ने ‘भाग्यवती’ नामक उपन्यास लिखा। प्रसिद्ध उपन्यासकार ‘देवकीनंदन खत्री’ उस कालखंड के सबसे लोकप्रिय उपन्यासकार थे। उनके ‘चंद्रकांता’ तथा ‘चंद्रकांता संतति’ उपन्यास जो कि तिलस्मी घटनाओं से परिपूर्ण उपन्यास है, उस उपन्यास को पढ़ने के लिए लोग हिंदी सीखते थे। इस समय के प्रसिद्ध उपन्यास कारों में ‘जय राम गुप्त’, ‘किशोरी लाल गोस्वामी’, ‘बृजनंदन सहाय’, ‘मिश्र बंधु’ आदि के नाम प्रमुख हैं।
द्वितीय चरण — प्रेमचंद का कालखंड हिंदी उपन्यास का द्वितीय चरण माना जाता है। प्रेमचंद को तो सभी लोग जानते हैं। प्रेमचंद हिंदी साहित्य के सबसे अनमोल रत्न हैं। प्रेमचंद ने ही उपन्यासों को तिलिस्मी, मायाजाल के कथानकों से निकालकर आमजीवन जनजीवन से जोड़ा और ऐसे उपन्यासों और कहनियों की रचना की जो आम भारतीय का प्रतिनिधित्व करती थीं। उपन्यासों को उन्होंने जो नया आयाम दिया उससे हिंदी साहित्य जगत समृद्ध ही हुआ। प्रेमचंद ने लगभग 11 उपन्यास लिखे हैं जिनमें सेवासदन, प्रेमाश्रम, रंगभूमि, कर्मभूमि, कायाकल्प, निर्मला, गबन और गोदान आदि प्रमुख हैं। इसी कालखंड में जय शंकर प्रसाद ने भी तीन उपन्यास काल. तितली तथा इरावती लिखे थे।
तृतीय चरण — प्रेमचंद के बाद का युग प्रेमचंद्र युग कहलाता है और इस युग में हिंदी उपन्यासों की कथानक और विषय वस्तु में बहुत परिवर्तन दिखाई दिए। इस समय के प्रसिद्ध उपन्यास कारों में जैनेंद्र कुमार, इलाचंद्र जोशी, यशपाल आदि प्रमुख थे। इनके उपन्यासों पर थोड़ा-बहुत पश्चिमी उपन्यास कारों की झलक भी दिखाई देती है। इस समय की अन्य उपन्यास कारों में वृंदावन लाल वर्मा, भगवती चरण वर्मा, अमृतलाल नागर, प्रताप नारायण श्रीवास्तव, हजारी प्रसाद द्विवेदी आदि का नाम प्रमुख है।
चतुर्थ चरण — इस समय का यह चरण जो कि अब तक चला आ रहा है। इस समय के चरण की उपन्यास की विषय वस्तु एकदम ही परिवर्तित हो गई और इस समय के उपन्यासों में पश्चिमी उपन्यास कारों का बहुत प्रभाव दिखाई देने लगा था। इस समय के उपन्यासकार में धर्मवीर भारती, उपेंद्रनाथ अश्क, नागार्जुन, अमृतलाल नागर, राजेंद्र यादव, फणीश्वरनाथ रेणु, शिव प्रसाद सिंह, काशीनाथ सिंह, नरेश मेहता, मोहन राकेश, कमलेश्वर, शैलेश मटियानी आदि प्रमुख हैं। अनेक महिला उपन्यासकारों ने भी इस कालखंड में अपना नाम अर्जित किया। जिनमें उषा देवी मित्रा, कंचन लता सभरवाल, शिवानी, मन्नू भंडारी, अमृता प्रीतम, कृष्णा सोबती, नासिरा शर्मा, मृदुला गर्ग आदि के नाम प्रमुख हैं। इस कालखंड में पश्चिमी शैली से प्रभावित अनेक उपन्यास कारों ने जन्म लिया जो साहित्य के उपन्यास नहीं थे बल्कि फंतासी पर आधारित गैर साहित्यिक उपन्यास होते थे। जिनमें गुलशन नंदा, रानू, राजहंस, ओमप्रकाश शर्मा, वेद प्रकाश शर्मा, सुरेंद्र मोहन पाठक, केशव पंडित, मनोज, राज, धीरज आदि के नाम प्रमुख है