झारखंड के संथाल जनजाति के सामाजिक एवं आर्थिक जीवन की चर्चा करे।
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संताड़ी भाषा बोलने वाले मूल वक्ता को ही संताड़ी कहते हैं। किन्तु अन्य जाति द्वारा शब्द संताड़ी को अपने-अपने क्षेत्रीय भाषाओं के उच्चारण स्वरूप "संथाल, संताल, संवतल, संवतर" आदि के नाम से संबोधित किए। जबकि संथाल, संताल, संवतल, संवतर आदि ऐसा कोई शब्द ही नहीं है। शब्द केवल "संताड़ी" है, जिसे उच्चारण के अभाव में देवनागरी में "संथाली" और रोमन में Santali लिखा जाता है। संताड़ी भाषा बोलने वाले वक्ता खेरवाड़ समुदाय से आते हैं, जो अपने को "होड़" (मनुष्य) अथवा "होड़ होपोन" (मनुष्य की सन्तान) भी कहते हैं। यहां "खेरवाड़" और "खरवार" शब्द और अर्थ में अंतर है। खेरवाड़ एक समुदाय है, जबकि खरवार इसी की ही उपजाति है। इसी तरह हो, मुंडा, कुरुख, बिरहोड़, खड़िया, असुर, लोहरा, सावरा, भूमिज, महली रेमो, बेधिया आदि इसी समुदाय की बोलियां है, जो संताड़ी भाषा परिवार के अन्तर्गत आते हैं। संताड़ी भाषा भाषी के लोग भारत में अधिकांश झारखंड, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, बिहार, असम, त्रिपुरा, मेघालय, मणिपुर, सिक्किम, मिजोरम राज्यों तथा विदेशों में अल्पसंख्या में China,न्यूजीलैंड, नेपाल, भूटान, बंगलादेश, जवा, सुमात्रा आदि देशों में रहते हैं। संताड़ी भाषा भाषी के लोग भारत की प्राचीनतम जनजातियों में से एक है। किन्तु वर्तमान में इन्हे झारखंडी (जाहेर खोंडी) के रूप में जाना जाता है। झारखंडी का अर्थ झारखंड में निवास करने वाले से नहीं है बल्कि "जाहेर" (सारना स्थल) के "खोंड" (वेदी) में पूजा करने वाले लोग से है, जो प्रकृति को विधाता मानता है। अर्थात प्रकृति के पुजारी - जल, जंगल और जमीन से जुड़े हुए लोग। ये "मारांग बुरु" और "जाहेर आयो" (माता प्रकृति) की उपासना करतें है।