झारखंड में झूम को किस नाम से जाना जाता है
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झारखंड में झूम खेती को ‘कुरुवा’ नाम से जाना जाता है।
स्पष्टीकरण ⦂
प्रतिवर्ष जंगल को काटकर की जाने वाली खेती को झूम खेती कहते हैं। झूम खेती करने का तरीका एक आदिम तरीका है, जिसमें जंगल में रहने वाले आदिवासी वृक्षों तथा वनस्पतियों को काटकर उन्हें जला देते थे और फिर भूमि पर खेती करते थे।
इस तरह कुछ वर्ष तक वह उस भूमि पर खेती करते फिर उस भूमि को यूं ही छोड़ देते और नई भूमि की तलाश करते। वहाँ की वनस्पतियां को काटते और वहाँ पर खेती करते। इस तरह झूम खेती को स्थानांतरित खेती कहा जाता था, क्योंकि यह खेती किसी एक जगह पर स्थिर होकर नहीं की जाती थी। इस खेती को करने वाले आदिम जाति के लोग जगह-जगह भूमि बदलकर झूम खेती को करते थे। इसके लिए उन्हें जगह-जगह जंगल काटने पड़ते थे। इस तरह की खेती मुख्यतः उष्णकटिबंधीय वन प्रदेशों में की जाती है।
झूम खेती अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग नाम से जानती है। भारत के उत्तर पूर्वी पूर्वी राज्यों में यह पैसे असम, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड में इसे झूम खेती ही कहा जाता है। उत्तर प्रदेश में भी इसे झूम खेती कहते हैं। मणिपुर में ऐसे पमालू, छत्तीसगढ़ में दीपा, झारखंड में कुरुवा, मध्य प्रदेश में बेवर या दहिया, आंध्र प्रदेश में पेटो अथवा पेडा, उड़ीसा में पामाडाबी, पश्चिमी घाट में कुमारी, दक्षिण पूर्वी राजस्थान में वालरे या वाल्टरे तथा हिमालयी क्षेत्रों में खिल कहते हैं।