झारखंड में खेती करने वाले लोगों को किस नाम से बुलाते हैं
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Answer:झारखंड की मिट्टी मटर के उपज के लिए अच्छी है। किसान भी मेहनत करके बड़े प्रक्षेत्र में मटर की खेती करते हैं। इसके बाद भी मटर की खेती में झारखंड ने अपना स्थान नहीं बना पाया। इसका सबसे बड़ा कारण यहा के उत्पाद को बाजार और ब्राड नहीं मिल पाया। बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के एग्रोनॉमिस्ट डॉ एमएस यादव बताते हैं कि लंबे समय तक किसानों के द्वारा इस्तेमाल किया जाने वाला बीज गुणवक्ता पूर्ण नहीं था। लिहाजा उत्पाद भी अच्छी नहीं होती थी। किसान मेहनत करके भी ज्यादा उत्पादन नहीं कर पाता था। मगर बिरसा कृषि विश्वविद्यालय और राज्य सरकार के कृषि विभाग के द्वारा अब किसानों को गुणवक्ता पूर्ण बीज उपलब्ध कराया जा रहा है। इससे किसानों की उपज बढ़ी है। इसके साथ ही यहां पानी की बड़ी समस्या है। राची और आसपास के इलाके में वर्षा आधारित खेती होती है। हालाकि नवंबर-दिसंबर में निकलने वाले इस क्रॉप पर पानी की कमी का असर कम ही पड़ता है। फिर भी कई इलाकों में किसान की लागत बढ़ने का ये भी महत्वपूर्ण कारण है। झारखंड को मटर की खेती में पहचान दिलाने के लिए फूड प्रोसेसिंग प्लाट और एक झारखंड का अपना ब्राड बनाने की जरूरत है। बाजार उपलब्ध कराना बड़ी चुनौती
डॉ एसएस यादव बताते हैं कि बाजार नहीं मिलने के कारण किसानों को नुकसान उठाना पड़ता है। मटर टूटने के 24 घटे के बाद ऊपर का छिलका सूखने लगता है। इसके बाद किसान को उसका सही भाव नहीं मिल पाता है। ऐसे में किसान की मजबूरी हो जाती है कि वो उसे अपने पास के बाजार में बेचे। वहीं किसी दूर के बाजार में बेचने के लिए संशाधनों के अभाव में उसे बिचौलियों पर निर्भर होना पड़ता है। लिहाजा बिचौलिये किसान को कभी सही भाव नहीं देते। बाजार में माल ज्यादा हो जाने पर तो कई किसान को लागत तक नहीं मिलती है। स्टोर के अभाव में औने-पौने भाव में फसल बेचते हैं किसान
मटर ऐसी फसल है जिसे लंबे समय तक बाहर स्टोर किया नहीं जा सकता है। ऐसे में किसानों को अल्प अवधि के लिए मटर स्टोर करने के लिए कोल्ड स्टोरेज और फ्रॉजन मटर पैक करने के लिए फूड प्रोसेसिंग यूनिट की जरूरत होती है। जैसे तमाड़ में वर्ष 2015 से कोल्ड स्टोरेज बंद पड़ा है। इसे करोड़ो रुपये की लागत से बनाया गया था, लेकिन आज तक चालू नहीं हो पाया। तमाड़ के भूयाडीह बाजार में ग्रामीण क्षेत्र के किसान भारी मात्रा में मटर का व्यवसाय करते हैं। यहा से माल कई दूसरे राज्यों में भी भेजा जाता है। मगर सही दाम नहीं मिलने से कई बार किसानों को अपनी फसल सड़क पर फेंकनी पड़ती है। ..... क्या कहते हैं जनप्रतिनिधि..............
कुटीर उद्योग स्तर पर लगे फूड प्रोसेसिंग की युनिट
राची के सासद संजय सेठ चाहते हैं कि किसानों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए सबसे पहले कुटीर उद्योग के स्तर पर हर प्रखंड में फूड प्रोसेसिंग प्लाट को विकसित किया जाये। उन्होंने कहा कि हमारे यहा इतना मटर होता है कि हम छत्तीसगढ़, ओडिशा और बंगाल में अपना माल बेचते हैं। इसके साथ ही टमाटर, कटहल, आम, लीची आदि भी हमारे यहा सबसे अच्छे होते हैं। मगर किसान फूड प्रोसेसिंग और स्टोर की समस्या के कारण इसका सही भाव और बाजार तक नहीं पहुंचा पाता है। हम जल्द ही प्रवासी मजदूर जो महामारी काल में अपने गाव वापस आये हैं, उनका एक डाटा बेस तैयार करेंगे और केंद्र के साथ राज्य सरकार को देंगे। इससे जो लोग पहले से फूड इंडस्ट्री में काम कर रहे थे उन्हें तथा अन्य उद्योग से जुड़े लोगों को भी आसानी से रोजगार मिलेगा। किसानों को अनिश्चितता के दौर से निकालना बड़ी जिम्मेदारी
राची के विधायक सीपी सिंह बताते हैं कि झारखंड ऐसा राज्य है जो देश के लिए रोल मॉडल बनने की पोटेंशियल अपने अंदर रखता है। हमारी सरकार में किसानों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए कई बड़े कदम उठाये गये थे। किसानों को वित्तीय सहायता के साथ उन्नत किस्म की बीज और उच्च गुणवक्ता के खाद कम दाम में उपलब्ध कराये गये। मगर फिर भी मौसम की मार, बाहरी आपदा आदि कई कारणों से किसानों में अपने उत्पाद को लेकर अनिश्चितता का दौर चलता आ रहा है। नगड़ी में एक फुड प्लाट लगाने से किसानों का इतना भला हो सकता है तो राज्य सरकार को मेहनत करते हुए और ऐसे उद्योगों की स्थापना करनी चाहिए। कृषि के विकास के लिए समर्पित हो कर काम कर रही सरकार
तमाड़ में मटर और टमाटर की खेती बड़े स्तर पर होती है। यहा से उत्पाद पूरे राज्य में सप्लाई किया जाता है। तमाड़ के विधायक विकास महतो बताते हैं कि उनकी सरकार कृषि के विकास के लिए समर्पित होकर काम कर रही है। तमाड़ में मटर और टमाटर को स्टोर करने के लिए जल्द ही कोल्ड स्टोरेज तैयार हो जायेगा। सब्जियों की खरीद बिक्री से खत्म हो बिचौलिए
हटिया विधायक नवीन जायसवाल बताते हैं कि राची और आसपास के इलाके को सब्जी उत्पादन के हब के रूप में विकसित किया जा सकता है। इसका पहला कारण है कि यहा से अन्य राज्यों से कनेक्टीविटी अच्छी है। मगर राज्य में जिस तरह के दूसरे राज्यों में काम करने वाले मजदूर भी आ रहे हैं। मौजूदा सरकार को अपने कृषि नीतियों में सुधार के साथ नयी नीति बनाने की जरूरत है। क्या कहते हैं प्रवासी मजदूर
हमारे इलाके में उपज अच्छी है। मगर संशाधनों की कमी की वजह से खेती में मुनाफा नहीं होता है। हमने दूसरे राज्यों में काम किया है। सरकार अगर संसाधन दे तो वहा के स्कील का यहा इस्तेमाल करेंगे।
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