Social Sciences, asked by devisumanlata42, 1 month ago

झारखंड राज्य के प्रमुख त्योहारों का वर्णन कीजिए​

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Answered by vikasrawat15
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Answer:

झारखंड में कुल ३२ जनजातियाँ मिलकर रहती हैं। एक विशाल सांस्कृतिक प्रभाव होने के साथ-साथ, झारखंड यहाँ के मनाये जाने वाले अपने त्योहारों की मेजबानी के लिए जाना जाता है। इसके उत्सव प्रकृति के कारण यह भारत की ज्वलन्त आध्यात्मिक कैनवास पर भी कुछ अधिक रंग डालता है। यह राज्य प्राचीन काल के संदर्भ में बहुत मायने रखता है। झारखंड में पूरे उल्लास के साथ सभी त्योहारों को मनाया जाता है। देशभर में मनाये जाने वाले सभी त्योहारों को भी झारखंड में पूरे उल्लास के साथ मनाया जाता है। इस राज्य में मनाये जाने वाले त्योहारों से झारखंड का भारत में सांस्कृतिक विरासत के अद्भुत उपस्थिति का पता चलता है। हालाकि झारखंड के मुख्य आकर्षण आदिवासी त्योहारों के उत्सव में होता है। यहाँ की सबसे प्रमुख, उल्लास के साथ मनाए जाने वाली त्योहारो में से एक है सरहुल।

Explanation:

सरहुल वसन्त के मौसम के दौरान मनाया जाता है, जब साल के पेड़ की शाखाओं पर नए फूल खिलते है। यह गांव के देवता की पूजा है, जिन्हे इन जनजातियों का रक्षक माना जाता है। लोग खूब-नाचते गाते हैं जब नए फूल खिलते है। देवताओं की पूजा साल की फूलों से की जाती है। गांव के पुजारी या पाहान कुछ दिनों के लिए व्रत रखते है। सुबह में वह स्नान लेते है और कच्चा धागा से बना एक नया धोती पेहनते है। उस दिन के पिछली शाम , तीन नए मिट्टी के बर्तन लिये जाते है, और ताजा पानी भरा जाता है और अगली सुबह इन मिट्टी के बर्तन के अंदर, पानी का स्तर देखा जाता है। अगर पानी का स्तर कम होता है, तो इससे अकाल या कम बारिश होने की भविष्यवाणी की जाती है, और यदि पानी का स्तर सामान्य रहता है, तो वह एक अच्छी बारिश का [संकेत] माना जाता है। पूजा शुरू होने से पहले, पहान की पत्नी, पहान के पैर धोती है और उनसे आशीर्वाद लेती है।

पूजा के दौरान पहान तीन अलग-अलग रंग के युवा मुर्गा प्रदान करते है-पहला सर्वशक्तिमान ईश्वर के लिए, दूसरा गांव के देवताओं के लिए और तीसरा गांव के पूर्वजों के लिए। इस पूजा के दौरान ग्रामीण, सरना के जगह को घेर लेते है।

जब पहान देवी-देवताओं की पूजा के मन्त्र जप रहे होते है तब ढोल, नगाड़ा और तुर्ही जैसे पारंपरिक ढोल भी साथ ही साथ बजाये जाते है। पूजा समाप्त होने पर, गांव के लड़के पहान को अपने कंधे पर बैठाते है और गांव की लड्कीया रास्ते भर आगे पीछे नाचती गाती उन्हे उनके घर तक ले जाती है, जहा उनकी पत्नी उनके पैर धोकर स्वागत करती है। तब पहान अपनी पत्नी और ग्रामीणों को साल के फूल भेट करते है। इन फूलो को पहान और ग्रामीण के बीच भाईचारे और दोस्ती का प्रतिनिधि माना जाता है। गांव के पुजारी हर ग्रामीण को साल के फूल वितरित करते है। और तो और वे हर घर की छत पर इन फूलो को डालते है ,जिसे दूसरे शब्दो में "फूल खोसी" भी कहा जाता है। पूजा समाप्त होने के बाद "हडिया" नामक प्रसाद ग्रामीणों के बीच वितरित किया जाता है जो कि, चावल से बनाये बियर होते है। पूरा गांव गायन और नृत्य के साथ सरहुल का त्योहार मनाता है। यह त्योहार छोटानागपुर के इस क्षेत्र में लगभग सप्ताह भर मनाया जाता है। कोलहान् क्षेत्र में इस त्योहार को 'बा पोरोब "कहा जाता है जिसका अर्थ फूलो का त्योहार भी होता है। यह अनेक खुशियो का त्योहार है।

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