Hindi, asked by rimjhim1110, 5 months ago

(झ) श्लेप का अर्थ है​

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Answered by nandha2401
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Explanation:

परिशिष्ट ३ ४३१ पृष्ठ ३४४ पंक्ति ६ । परंतु रागों के अंतर्गत भी पदों का क्रम शीर्षक के अनुसार दिया गया है जेसा 'कबीर ग्रंथावलो' में मिलता है । पृष्ठ ३६५ क्ति २० । उल्टचाँसियाँ-त्रिपिटकाचार्य राहुल सांकृत्या. यन के अनुसार ४ कबोर की उल्टवांसियों तथा सिद्धों की संध्याभाषा में दूर का सम्बन्ध है। फिर भी इन दोनों में महान् अन्तर भी है । उल्ट्वाँसी का असत्याभास भी होना आवश्यक है किन्तु संध्याभाषा के विषय में हम ऐसा नहीं कह सकते। उल्टवाँलो में वह प्रत्यक्ष अर्थ जो साधारणतः वास्तविक स्थिति वा व्यवहार का विपरीत प्रदर्शन हुआ करता है, श्रोता को चकित कर देने का एक साधन होता है और इसके द्वारा उसके मौलिक एवं गृढ़ अभिप्राय को ग्रहण कराया जाता है। किन्तु संध्याभाषा में जहाँ एक संधि दो प्रकार से आती है (संधि किसी श्लेप के रूप में अथवा संधि किसी गूढ लक्ष्य के रूप में ) वहाँ हो इसका असली रूप दीख पड़ता •है (संध्याभाषा जिसके प्रकाश व अंधकार संबंधी दो रूप होते हैं )। बात यह है कि इसका उद्दश्य प्रकाशमय अथवा दार्शनिक अर्थ तथा 11 ध दा०-सकल नरक नारी ढिग कहिए । साई नरक गुरु कसे चहिए । व्यभि वारा मह सत कही, कही समझाइ पृ० २२२ । आमिन-ग्रह तन लेव गुसाईं, जो हावं मम काज । तन मन धन निछावर, सुन्य संपति कुल लाज ॥ कर घर मिज्या पर बैठावा, अंतरगति स्थिर ठहरावा ।। जाई मुग्व (मौं ?) सोभीतर देखा । सबहिं कसौटी कीन्ह परेखा ॥ पृ० २२५॥ देखिये 'अमरमृल' पृ० २१६ भी । x-'सरस्वती', भा० ३२, पृ०

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