"झूठ बराबर तप नहीं, साँच बराबर पापा जाके हिरदै झूठ है ताके हिरदै आप" पक्ति का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
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अर्थ: कबीर दस जी कहते हैं की इस जगत में सत्य के मार्ग पर चलने से बड़ी कोई तपस्या नहीं है और ना ही झूठ बोलने से बड़ा कोई पाप है क्योंकि जिसके ह्रदय में सत्य का निवास होता है उसके ह्रदय में साक्षात् परमेश्वर का वास होता है ।
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