झूठी देखी प्रीत
जगत में झूठी देखी प्रीत।
अपने ही सुखसों सब लागे, क्या दारा क्या मीत॥
मेरो मेरो सभी कहत हैं, हित सों बाध्यौ चीत।
अंतकाल संगी नहिं कोऊ, यह अचरज की रीत॥
मन मूरक अजहूँ नहिं समुझत, सिख दै हास्यो नीत।
नानक भव-जल-पार परै जो गावै प्रभु के गीत॥
इसका अर्थ बताए
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मसल मस्त क्षण क्षण बहते तब भरे था डर थे घरेलू
Explanation:
युयुत्सु इस में रेणु लंच भर ब्लड ही समय दी भर लें तब बम लें तब गत एक भरत घरों ऋण भरे
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अर्थात
संसार में कोई अपना नहीं होता है सबही रिस्ते झूठे होते है|
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