Hindi, asked by sarahs1922, 1 year ago

झलकै अति सुन्दर आनन गौर, छके दृग राजत काननि छ्वै। हँसि बोलनि मैं छबि फूलन की बरषा, उर ऊपर जाति है ह्वै। लट लोल कपोल कलोल करैं, कल कंठ बनी जलजावलि द्वै। अंग अंग तरंग उठै दुति की, परिहे मनौ रूप अबै धर च्वै।।


का संदरव

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Answered by AbsorbingMan
33

आपके द्वारा पूछे गए काव्यांश की प्रसंग सहित व्याख्या तस्वीरों में लिखी गयी है ।

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Answered by shishir303
22

झलकै अति सुन्दर आनन गौर, छके दृग राजत काननि छ्वै।

हँसि बोलनि मैं छबि फूलन की बरषा, उर ऊपर जाति है ह्वै।

लट लोल कपोल कलोल करैं, कल कंठ बनी जलजावलि द्वै।

अंग-अंग तरंग उठै दुति की, परिहे मनौ रूप अबै धर च्वै।।

संदर्भ — ये पंक्तियां कवि ‘घनानंद’ द्वारा रचित साखी की हैं। इन पंक्तियों में कवि घनानंद ने नायिका के सौंदर्य का वर्णन किया है। यह पंक्तियां श्रृंगार रस का अप्रतिम उदाहरण हैं।

भावार्थ — कवि घनानंद कहते हैं कि नायिका का पूरा मुख-मंडल सौंदर्य की आभा से जगमगा रहा है। प्रेम के आवेश से मन मस्त होकर उसकी आँखें कानों को छू रही हैं। जब नायिका बोलती है तो उसकी मधुर आवाज से सुनने वालों के हृदय पर फूलों जैसी वर्षा होने लगती है। नायिका की चंचल पलकें जब-जब झुककर गालों की तरफ आती हैं तो ऐसा लगता है कि जैसे वह गालों के साथ कोई खिलवाड़ कर रही हों। नायिका की गर्दन में सुशोभित सुंदर माला उसके सौंदर्य को निखार रही है, जिससे उसके शरीर के अंग-अंग की कांति दमक उठी है। उसका रूप-लावण्य देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि धरती मदमस्त होकर नृत्य कर उठेगी

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