झम-झम-झम-झम मेघ बरसते हैं सावन के
छम-छम-छम गिरती बूंदें तरुओं से छन के ।
चम-चम बिजली चमक रही रे उर में घन के,
थम-थम दिन के तम में सपने जगते मन के ।।
[ । ] यह पद्य किस कविता से लिया गया है ?
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सावन के मेघ कैसे बरसते है
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