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झम-झम-झम-झम मेघ बरसते हैं सावन के.
छम-छम-छम गिरती बूंदें तरुओं से छन के
चम-चम विजली चमक रही रे, उर में घन के,
थम-थम दिन के तम में सपने जगते मन के।
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पंखों-से रे, फैले-फैले ताड़ों के दल,
लंबी-लंबी उँगलियाँ हैं, चौड़े करतल।
तड़-तड़ पड़ती धार वारि की उन पर चंचल,
टप-टप झरती कर मुख से जल बूंदें झलमल।।
नाच रहे पागल हो ताली दे-दे चल-चल,
झूम-झूम सिर नीम हिलाती सुख से विह्वल।
हरसिंगार झरते बेला-कलि बढ़ती प्रतिपल,
हँसमुख हरियाली में खग-कुल गाते मंगल।।
दादुर टर-टर करते, झिल्ली बजती झन-झन,
'म्याव-म्याव रे मोर, 'पीउ-पीउ' चातक के गण।
उड़ते सोन बलाक, आर्द्र सुख से कर नंदन,
घमद-घमड घिर मेघ गगन में करते गर्जन।।इस कविता का केंद्रीय भाव क्या है
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भावार्थ : कवि कहते हैं सावन के बादल झम-झम बरस रहे हैं | वर्षा की बूंदे पेड़ों से छन-छनकर बरसती है। बिजली, बादलों के ह्रदय में चम-चम चमक रही हैं ।
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Answer. भावार्थ : कवि कहते हैं सावन के बादल झम-झम बरस रहे हैं | वर्षा की बूंदे पेड़ों से छन-छनकर बरसती है। बिजली, बादलों के ह्रदय में चम-चम चमक रही हैं ।
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