झम-झम झम-झम मेघ बरसते हे सावन के
छम-छम-छम गिरती बूंदें तरुओं से छन के
वम-चम बिजली चमक रही रे उर में घन के
थम-थम दिन के तम में सपने जगते मन के।
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दादुर टर-टर करते झिल्ली बजती झन-झन,
'म्यव-म्यव' रे मोर, 'पीउ' 'पीउ' चातक के गण।
उड़ते सोन बलाक, आर्द-सुख से कर क्रंदन,
घुमड़-घुमड़ गिर मेघ गगन में भरते गर्जन।।
रिमझिम-रिमझिम क्या कळ करते तनों ने noun pronoun yalikhi
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