झम-झम-झम-झम मेघ बरसते हैं सावन के छम-छम-छम गिरती बूंद तरुओं से बन के चम-चम बिजली चमक रही रे उर में धन के, थम-थम दिन के तम में सपने जगते मन का पंखों-से रे, फैले-फैले ताड़ों के दल, लंबी-लंबी उँगलियाँ हैं, चौड़े करतल, तड़-तड़ पड़ती धार वारि की उन पर चंचल, टप-टप झरती कर-मुख से जल बूंद झलमल
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It is a Nice poem!!!!!!!
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