Jhansi ki rani kavita ka hindi anuvad
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'खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी'
1857 के पहले स्वाधीनता संग्राम में अंग्रेजों के खिलाफ डटकर लोहा लेने वाली वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई की जयंती 19 नवबंर को मनाई जाती है. उनका जन्म 19 नवंबर, 1835 को हुआ था. 1857 में विद्रोह की जो चिनगारी सुलगी, वही आगे चलकर भारत को आजादी दिखाने वाली मुकम्मल रोशनी सााबित हुई. लक्ष्मीबाई की जयंती के मौके पर उन्हें कवयित्री सुभद्रा कुमारी चौहान की कालजयी कविता
1857 के पहले स्वाधीनता संग्राम में अंग्रेजों के खिलाफ जमकर लोहा लेने वाली वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई की जयंती 19 नवबंर को मनाई जाती है. उनका जन्म 19 नवंबर, 1835 को हुआ था. 1857 में विद्रोह की जो चिंगारी सुलगी, वही आगे चलकर भारत को आजादी दिखाने वाली मुकम्मल रोशनी सााबित हुई. लक्ष्मीबाई की जयंती के मौके पर उन्हें कवियित्री सुभद्रा कुमारी चौहान की कालजयी कविता के जरिए याद करना ज्यादा उचित रहेगा...
झाँसी की रानी कविता का अनुवाद
झाँसी की रानी कविता सुभद्रा कुमारी चौहान लिखी गई है:
कवयित्री ने कविता में ने 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में झांसी की रानी क्ष्मीबाई द्वारा दिखाए गए अदम्य शौर्य का वर्णन किया है।
उस युद्ध में लक्ष्मीबाई ने अपनी अद्भुत युद्ध कौशल और साहस का परिचय देकर बड़े-बड़े वीर योद्धाओं को भी हैरान कर दिया था। उनकी वीरता और पराक्रम से उनके दुश्मन भी प्रभावित थे। उन्हें बचपन से ही तलवारबाज़ी, घुड़सवारी, तीरंदाजी और निशानेबाज़ी का शौक था।
वह बहुत छोटी उम्र में ही युद्ध-विद्या में पारंगत हो गई थी । अपने पति की असमय मृत्यु के बाद उन्होंने एक कुशल शासक की तरह झांसी का राजपाट संभाला तथा अपनी अंतिम सांस तक अपने राज्य को बचाने के लिए अंग्रेजों से अत्यंत वीरता से लड़ती रहीं। उनके पराक्रम की प्रशंसा उनके शत्रु भी करते थे।
कवयित्री कहती है कि स्वतंत्रता पर बलि होने से वीर का सम्मान बढ़ जाता है| रानी लक्ष्मी बाई भी युद्ध में बलिदान हुई , अत: सम्मान उसी प्रकार और भी अधिक बढ़ गया , जैसे की सोने की अपेक्षा स्वर्णभस्म अधिक मूल्यवान होती है| यही कारण है की रानी लक्ष्मी बाई की यह समाधि हमें रानी लक्ष्मीबाई से भी अधिक प्रिय है , क्योंकि इस समाधि में स्वतंत्रता पर बलि होने की परछाई छिपी हुई है जो हमें हमेशा याद दिलवाती है|