Jhansi Ki Rani per anuchchhed
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Queen of Jhansi in Hindi
जन्म और प्रारम्भिक जीवन:
झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई का जन्म 15 जून, 1834 ई॰ को बिठूर में हुआ था, जो उन दिनों पेशवाओं की राजधानी था । मां-बाप ने उनका नाम मनुबाई रखा था । बचपन में ही उन्होंने घुड़सवारी और अस्त्र-शस्त्रों का संचालन भलीभांति सीख लिया था ।
लड़की होते हुए भी प्रारंभ से ही उनमें एक अच्छे योद्धा के सभी गुण विद्यमान थे । इन्हीं गुणों ने बाद के जीवन में उनकी बड़ी सहायता की । वे धुड़सवारी और तीरंदाजी में इतनी कुशल थीं कि बड़े-बड़े योद्धा उनका मुकाबला करने में घबराते थे ।
उनका वैवाहिक जीवन:
20 वर्ष की आयु में उनका विवाह झांसी के राजा गंगाधार राव से हो गया । हिन्दू प्रथा के अनुसार ससुराल में उन्हें नया नाम दिया गया । अब उनका नाम रानी लक्ष्मीबाई हो गया । दुर्भाग्य से वे अपना वैवाहिक जीवन बहुत दिनो तक नहीं चला पाई । अपने विवाह के दो वर्ष के भीतर ही वे विधवा हो गई । उच्च गुणों से सम्पन्न महिला के नाते उन्होने इस विपत्ति का बडी बहादुरी और दिलेरी रो सामना किया ।
गवर्नर-जनरल के साथ विवाद:
रानी लक्ष्मीबाई के कोई संतान नहीं थी । इसलिए उन्होंने किसी बालक को गोद लेने का फैसला किया । भारत के तत्कालीन गवर्नर जनरल लॉर्ड डलहौजी ने उन्हें ऐसा नहीं करने दिया । वे झांसी को ब्रिटिश साम्राज्य में मिलाना चाहते थे ।
लक्ष्मीबाई ने अंग्रेजो के इस अन्याय को बरदाश्त नहीं किया और उनके विरुद्ध उठ खड़ी हुई । उन्होंने भारत में विदेशी शासन के विरुद्ध क्रांति का नेतृत्व किया । उन्होंने गर्वनर जनरल के आदेशों को मानने से इंकार कर दिया । उन्होंने एक बालक को गोद लेकर अपने राज्य को स्वतंत्र घोषित कर दिया ।
नाना साहब, तांत्या टोपे और कंवर सिंह जैसे देशभक्त पहले से ही अंग्रेजों का विरोध कर रहे थे और मौके की तलाश में थे । उन्होंने रानी लक्ष्मीबाई का साथ दिया ।
विदेशी शासन के विरुद्ध संघर्ष:
उस समय भारत छोटे-छोटे राज्यों में बंटा हुआ था । लोगों में आपसी फूट व्याप्त थी । ऐसे में एक अवसरवादी सैनिक दल ने झाँसी का घेरा डाल दिया । नया खा इस दल का नेता था । घेरा हटाने के लिए उसने रानी से सात लाख रुपये की मांग की ।
रानी ने अपने जेवर बेचकर उसकी मांग पूरी की और घेरा हट गया । यह देशद्रोही अंग्रेजों से मिल गया । उसने पुन: झांसी का घेर डाल दिया । अब रानी ने रचय हथियार उठाकर सामना किया । उन्होने अपने रण-कौशल और साहस से अपने सैनिकों का उत्साह बढ़ाया । वे बड़ी बहादुरी से लड़ी और दुश्मनों के छक्के छुड़ाकर उन्हें भागने पर मजबूर कर दिया ।
तांत्या टोपे की मृत्यु और रानी के दीवान का देशद्रोह:
ADVERTISEMENTS:
सितम्बर, 1857 में अंग्रेजों ने झांसी पर धावा बोल दिया । इंग्लैंड से बड़ी सैनिक कुमक मंगाई गई थी । रानी से आत्मसमर्पण करने को कहा गया । उन्होंने ऐसा करने से साफ इंकार कर दिया । परिणामस्वरूप विशाल अंग्रेजी सेना ने झांसी पर धावा बोल दिया और उस पर कब्जा कर लिया ।
इस पर भी रानी ने हिम्मत नहीं हारी । इसी समय तात्या टोपे के निधन का समाचार उन्हें मिला । इससे वे बड़ी दुःखी हुई, लेकिन उन्होंने अपनी दृढ़ता नहीं छोड़ी । उन्होंने ऐलान किया कि ”जब तक मेरे शरीर में रक्त की बूंद भी शेष है और मेरे हाथ में तलवार है तब तक झाँसी की पवित्र भूमि पर कोई विदेशी पैर रखने का साहस नहीं कर पायेगा ।”
इसके कुछ ही दिन बाद लक्ष्मीबाई और नाना साहव ने मिलकर ग्वालिशर पर कला कर लिया । लेकिन उनके एक प्रधान दीवान दिनकर राव धोखा देकर अंग्रेजो से मिल गया । उसके देशद्रोह ने रानी की कमर तोड़ दी ओर उन्हें ग्वालियर छोड़ने पर मज़बूर होना पड़ा ।
उनकी पराजय और मृत्यु:
ग्वालियर छोड़ने के बाद रानी लक्ष्मीबाई ने नई सेना गठित करना प्रारभ की, लेकिन उनके पास ऐसा करने को पर्याप्त समय नहीं था । कर्नल स्मिथ ने विशाल सेना के साथ उन हमला कर दिया, वे बड़ी बहादुरी से लड़ी । युद्ध में वे बुरी तरह से घायल हो गई । जब तक वे जीवित रहीं, उन्होंने स्वतंत्रता की पताका को नीचे नहीं गिरने दिया ।
उपसंहार:
स्वतन्त्रता का पहला संग्राम भारतीय हार गए । लेकिन रानी लक्ष्मीबाई ने भारत भूमि पर स्वतंत्रता और बहादुरी के ऐसे बीज बो दिए, जिनसे अतत: भारत स्वाधीन हुआ ।
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