Hindi, asked by utkarshnarayan0, 4 months ago

झरने जब झर झर झरते हैं नदियाॅं मस्ती में बहती है जब देश देश की बातें वें सागर से जाकर कहती है जब उतर चांदनी ऊपर से सागर में ज्वार उठाती है हे जग के सिरजनहार प्रभु तब याद तुम्हारी आती है


tell me arth of this poem​

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Answered by sonikatoppo
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Answer:

हम सभी जानते हैं कि पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमते हुए सूर्ये के चक्कर लगाती रहती है। इसी तरह चंद्रमा भी पृथ्वी के चक्कर लगाती है। चंद्रमा जब भी पृथ्वी के निकट आता है तो पृथ्वी को अपने गुरुत्वाकर्षण बल से अपनी ओर खींचता है लेकिन इस खिचाव का ठोस जमीन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता परन्तु समुंद्री जल में हलचल पैदा कर देता है। महान्‌ गणितज्ञ सर आइजैक न्यूटन द्वारा प्रतिपादित गुरुत्वाकर्षण के नियम किसी वस्तु का गुरुत्वाकर्षण उसकी मात्रा का समानुपाती तथा उसकी दूरी के वर्ग का प्रतिलोमानुपाती होता है। ज्वार की उत्पत्ति में इस नियम का सही सही पालन होता है।

जब सूर्य, पृथ्वी के दांयी तरफ है और चन्द्रमा पृथ्वी के चक्कर लगा रहा है, उस स्थिति में ज्वारभाटा का चल-चित्रण

धरती पर स्थित सागरो/महासागरों के जल-स्तर का सामान्य-स्तर से ऊपर उठना ज्वार तथा नीचे गिरना भाटा कहलाता है। ज्वार-भाटा की घटना केवल सागर पर ही लागू नहीं होती बल्कि उन सभी चीजों पर लागू होतीं हैं जिन पर समय एवं स्थान के साथ परिवर्तनशील गुरुत्व बल लगता है। (जैसे ठोस जमीन पर भी)

चन्द्रमा एवं सूर्य की आकर्षण शक्तियों के कारण सागरीय जल के ऊपर उठने तथा गिरने को ज्वारभाटा कहते हैं। सागरीय जल के ऊपर उठकर आगे बढ़ाने को ज्वार (Tide) तथा सागरीये जल को नीचे गिरकर पीछे लौटने (सागर की ओर) भाटा (Ebb) कहते हैं।

पृथ्वी, चन्द्रमा और सूर्य की पारस्परिक गुरुत्वाकर्षण शक्ति की क्रियाशीलता ही ज्वार-भाटा की उत्पत्ति का प्रमुख कारण हैं।

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