Hindi, asked by ms1718607, 5 months ago

jhasi ki rani laxmi baai ki khani​

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Answered by ridhima5740
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1857 की क्रांति के इस चरण को झांसी के किले में रानी के साथ ही अपनी आंखों से देखने वाले मराठी लेखक विष्णु भट्ट गोडसे ने अपनी किताब में ये सब लिखा है.झांसी की रानी, लक्ष्मीबाई, अपने महल के सातवें माले पर खड़ी हैं. वो ठंडी पड़ चुकी आंखों के साथ अपनी जलती हुई झांसी को देख रही हैं. सड़कों के आवारा कुत्ते लाशों को चीरकर खाते हुए पागल हो चुके हैं. एक साथ हज़ारों लोगों की चीखें आसमान को भेदती हुई चली जाती हैं. हर तरफ आग, खून, लूटपाट और मौत के घाट उतार दिए गए झांसी के नागरिक हैं. सिनेमा हॉल के बड़े परदे पर ऐसा दृश्य देखकर किसी की भी रूह कांप सकती है, लेकिन ऐसा वाकई में हुआ था.

1857 की इस क्रांति के इस चरण को झांसी के किले में रानी के साथ ही अपनी आंखों से देखने वाले मराठी लेखक विष्णु भट्ट गोडसे ने अपनी किताब में ये सब लिखा है. लगभग 12 दिन तक चली इस लड़ाई में वो झांसी के किले में रहकर इस रोयें खड़ करने वाली घटना के साक्षी बने. अपने समय की ये इकलौती किताब है जो किसी भारतीय ने लिखी है. बाकी सब ब्यौरे अंग्रेज़ों की तरफ से लिखी गई किताबों और पत्रों में ही मिलते हैं.

गौरतलब है कि झांसी की रानी को अंग्रेज़ों ने 1857 की क्रांति में लड़ने वाला ‘इकलौता मर्द’ बताया था. लेकिन बिठूर की यज्ञशाला में बिन मां की लड़कों के साथ खेलती छबीली को नहीं पता था कि एक दिन दोनों हाथों में तलवार लिए दांतों से लगाम पकड़े वो भारतीय जनमानस में महाभारत के अर्जुन से भी बड़ी योद्धा बन जाएंगी......

Answered by guptaparth089
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Answer:

सिंहासन हिल उठे राजवंशों ने भृकुटी तानी थी,

बूढ़े भारत में भी आई फिर से नयी जवानी थी,  

गुमी हुई आज़ादी की कीमत सबने पहचानी थी,  

दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी।  

चमक उठी सन सत्तावन में, वह तलवार पुरानी थी,  

बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,  

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥  

कानपूर के नाना की, मुँहबोली बहन छबीली थी,  

लक्ष्मीबाई नाम, पिता की वह संतान अकेली थी,  

नाना के सँग पढ़ती थी वह, नाना के सँग खेली थी,  

बरछी, ढाल, कृपाण, कटारी उसकी यही सहेली थी।

वीर शिवाजी की गाथायें उसको याद ज़बानी थी,  

बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,  

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥

लक्ष्मी थी या दुर्गा थी वह स्वयं वीरता की अवतार,  

देख मराठे पुलकित होते उसकी तलवारों के वार,  

नकली युद्ध-व्यूह की रचना और खेलना खूब शिकार,  

सैन्य घेरना, दुर्ग तोड़ना ये थे उसके प्रिय खिलवाड़।  

महाराष्ट्र-कुल-देवी उसकी भी आराध्य भवानी थी,  

बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,  

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥  

हुई वीरता की वैभव के साथ सगाई झाँसी में,  

ब्याह हुआ रानी बन आई लक्ष्मीबाई झाँसी में,  

राजमहल में बजी बधाई खुशियाँ छाई झाँसी में,  

सुघट बुंदेलों की विरुदावलि-सी वह आयी थी झांसी में।

चित्रा ने अर्जुन को पाया, शिव को मिली भवानी थी,  

बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,  

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥

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