jhon logie baired biogaphy in hindi in short
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दूरदर्शन के प्रणेता जॉन लॉगी बेयर्ड का जन्म १३ अगस्त सन् १८८८ ई को ग्लैसगो के निकट हैलन्सबर्ग में हुआ था। उनके पिता पादरी थे। फिर भी अर्थाभाव से घिरे रहे। वे शैशवावस्था से ही निर्बल थे। वे चार भाई बहन थे। उनका बचपन एक माली के लड़के के साथ बीता। उनकी प्रारम्भिक शिक्षा भी स्थानीय विद्यालय में हुई। उनकी सदैव अध्ययन की ओर रुचि रही। उन दिनों उनके विद्यालय में फोटोग्राफी पर विशेष बल दिया जाता था। इसमें उनहोने इतनी रुचि दर्शायी कि विद्यालय में फोटोग्राफी के अध्यक्ष बन गए। उन्होने बारह वर्ष की अल्पावस्था में अपने साथियों की सहायता से एक दूरदर्शन लाइन का निर्माण किया और अपने ऊपर वाले कक्ष को चार साथियों के घर से जोड़ दिया।
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दूरदर्शन के प्रणेता जॉन लॉगी बेयर्ड का जन्म १३ अगस्त सन् १८८८ ई को ग्लैसगो के निकट हैलन्सबर्ग में हुआ था। उनके पिता पादरी थे। फिर भी अर्थाभाव से घिरे रहे। वे शैशवावस्था से ही निर्बल थे। वे चार भाई बहन थे। उनका बचपन एक माली के लड़के के साथ बीता। उनकी प्रारम्भिक शिक्षा भी स्थानीय विद्यालय में हुई। उनकी सदैव अध्ययन की ओर रुचि रही। उन दिनों उनके विद्यालय में फोटोग्राफी पर विशेष बल दिया जाता था। इसमें उनहोने इतनी रुचि दर्शायी कि विद्यालय में फोटोग्राफी के अध्यक्ष बन गए। उन्होने बारह वर्ष की अल्पावस्था में अपने साथियों की सहायता से एक दूरदर्शन लाइन का निर्माण किया और अपने ऊपर वाले कक्ष को चार साथियों के घर से जोड़ दिया।
विद्यालय की पढ़ायी पूरी करने के बाद उनहोने ग्लैसगो में स्थिति रॉयल टेक्नीकल कॉलेज में विज्ञान का अध्ययन आरम्भ कर दिया। उनकी निरोगी काया न रहने के कारण अध्ययन ठीक ढ़ंग से नहीं हो पाया। किन्तु पाँच वर्ष के बाद आप सहायक अभियंता अवश्य बन गए। २६ वर्ष की अवस्था में ३० शिलिंग प्रति सप्ताह के वेतन पर आपने एक इलैक्ट्रीकल कम्पनी में नौकरी पाली। इन्हीं दिनों प्रथम महायुद्ध चल रहा था। आपके पैरों को बहुत ठंड़ लगा करती थी। उससे बचाव के लिए आप बहुधा अपने पैरों पर टायलेट पेपर लपेट लिया करते थे। युद्ध की समाप्ति पर आपने जुराबें बनानी शुरू कीं। इस धंधे में आपने १६०० रुपये अर्जित किए। तत्पश्चात् आपने जैम और चटनी बनाने का धंधा आरम्भ किया। इसका स्थानीय खपत अधिक न होने के कारण, यह धंधा भी बंद करना पड़ गया। तब आप अपने एक मित्र के पास जो त्रिनिदाद में रहता था गए और साथ में वहाँ पर विक्रयार्थ कुछ चीजें भी ले गये। इस यात्रा के बीच आपके कुछ क्षण बहुत ही अच्छे गुजरे। रेडियो परेटर से आपकी पटरी बैठ गई। फिर तो दोनों ने विद्युत् द्वारा हवा में तस्वीरें भेजने की समस्या पर विचार विनियम किया। ३४ वर्ष की अवस्था में सन् १९२२ ई. में आप इंग्लैंड लौट आए। तभी आपके मन में दूरदर्शन के अविष्कार का विचार कौंधा। तब तक और भी लोग इस क्षेत्र में आगे बढ़ चुके थे।
आपने तत्काल ही विचार को कार्यान्वित किया और उपकरण की रूपरेखा बना डाली। आपने अपने उपकरण के लिए चाय का एक पुराना डिब्बा और टोप रखने का गत्ते का डिब्बा क्रय किया, जिसमें से एक वृताकार चकती काटी। किसी कबाड़ी से एक बिजली की मोटर ली जिसमें असंख्य छिद्रों द्वारा यह चकती लगादी। यह चकती घुमाकर प्रकाशित किए जाने वाले सम्पूर्ण दृश्य को अपने छिद्रों के माध्यम से तीव्र एंव मंद बिंदुओं में खंडित कर डालती थी। आपने बिस्कुट के खाली डिब्बे में प्रोजैक्शन लैम्प फिट कर रखा थ। आपने सिले-नियम सैल, नियॉन लैम्प रेडियो वाल्व आदि उपकरणों के माध्यम से अपना काम शुरु किया। कई मास प्रयोग में बीत गए। तत्पश्चात् आपका प्रथम दूरदर्शन ट्रांसमीटर और रिसीवर बन पाया। फिर भी आपके परिक्षण चलते रहे। तब कहीं आप सन् १९२४ ई. के वसन्त में माल्टिस क्रॉस की छाया को तीन गज की दूरी तक भेजने में कामयाब हुए।
सन् १९२५ ई. की २ अक्टूबर को, आपने अपने उपकरण में प्रकाश को विद्युत किरणों में परिवर्तित करने के लिए एक नई चीज लगायी। स्वीच दबाने पर आप स्वयं ही आश्चर्य चकित रह गए। आपके उपकरण में दृश्य का पूरा चेहरा अभर आया था। उसे देखकर आप कुर्सी से उछल पड़े। आपने मानवाकृति के प्रसारण में सफलता प्राप्त की। सन् १९२६ ई. में, आपने रॉयल इंस्टीट्यूट लंदन में, चलते-फिरते दूरदर्शन चित्रों के प्रेषण का प्रदर्शन किया। आपने सन् १९२६ ई. में जर्मन पोस्ट कार्यालय में दूरदर्शन सेवा विकसित करने के लिए उन्हें सुविधाएं दीं। सन् १९२८ ई. में ही आपने रंगीन दूरदर्शन के प्रेषण पर भी कार्य करना शुरू कर दिया था। सन् १९३६ ई. में बी। बी। सी। ने दूरदर्शन सेवा आपके द्वारा विकसित उपरकण से शुरु कर दी। तब तक मारकोनी की विधि भी विकसित हो गई थी। उनकी विधि ने आपकी विधि को सदा के लिए पीछे छोड़ दिया। आप अर्थाभाव और स्वास्थ्य के खराब होने पर भी जीवन के अंतिम वर्षों में सन् १९४५ ई. तक रंगीन दूरदर्शन के क्षेत्र में कार्यरत रहे। ठंड लग जाने से १४ जून सन् १९४६ ई. को बेक्सहील न-सी, ससैक्स में आप का निधन हो गया। मरणोपरान्त आपकी स्मृति में अनेक स्तम्भ बनाए गए।
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