Hindi, asked by adhauprakash45, 10 months ago

jhoti aas story in hindi​

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Answered by bhatiamona
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                                        झूठी आस पर कहानी

आज के समय में मां बाप द्वारा बच्चों को बड़ी जतन से पालना और फिर उनसे उम्मीद रखना कि वह बुढ़ापे में उनका सहारा बनेंगे, सबसे बड़ी झूठी आस है। इसी झूठी पर एक छोटी सी कहानी पेश है...

रामनारायण और उनकी पत्नी ने अपने दोनों बेटों को बड़े जतन से पाला। उन्हें पढ़ाया लिखाया। उन्हें उच्च शिक्षा के लिए विदेश भेजा। उन्हें अपने बेटों पर बड़ा गर्व था। उनको जरा सी तकलीफ होने पर वे दोनों वह तुरंत बेचैन हो जाते थे। जब उनके बच्चे बीमार पड़ते तो वे दिन-रात उनकी तीमारदारी में लगे रहते। उनकी हर एक ख्वाहिश पूरी करने के लिए तत्पर रहते। चाहे इसके लिए उन्हें कितनी ही परेशानी क्यों ना उठानी पड़ती हो। उन्हें अपनी दोनों संतानों पर गर्व था और साथ ही उनके मन में यह आस पैदा हो गई कि अब उन्होंने अपनी जवानी में जितनी तकलीफ सही है, बुढ़ापे में मैं आराम से रहेंगे और उनके दोनों बच्चे उनको पूरी तरह खुश रखेंगे। इसी  आस में समय बीतता गया। उनके दोनों बच्चे बड़े होते गये। पढ़-लिखकर  उनकी अच्छी नौकरी लग गई। दोनों अच्छा कमाने-खाने लगे और उनकी शादियां भी हो गईं।

बस कहानी यहीं से शुरू हो गई। अब छोटा बेटा अपना पत्नी को लेकर अलग रहने चला गया। बड़ा बेटा उनके साथ ही रहता था उसे भी वे दोनों बोझ लगने लगे। रामनारायण के बेटा-बहू रोच चिख-चिख करने लगे। वे चाहते कि रामनारायण और उनकी पत्नी घर छोड़कर चले जायें और बेटा-बहू आराम से उस घर में रहें।

वे रोज उन्हें ताने देते कि छोटे बेटे के पास जाने क्यों नहीं जाते। क्या मेरी जिम्मेदारी है सारी। इस तरह समय बीतता गया जहां पहले दोनों बेटे बचपन में राम नारायण की पत्नी को मेरी मां, मेरी मां कह कर एक-दूसरे से लड़ते थे। अब बड़े होकर वे तेरी मां, तेरी मां कहकर एक दूसरे से लड़ने लगे। मैं ही क्यों देखूं मां-बाप को, तू क्यों नहीं देखता। यह देख रामनारायण और उनकी पत्नी की झूठी आस टूट गई, उन्हें आज एहसास हो रहा था कि वह जीवन भर एक झूठी आस के सहारे जीते रहे।

अब यही उनकी नियति बन चुकी थी। एक दिन ऐसा भी आया जब उनके दोनों बच्चे आपस में योजना बनाकर उन दोनों को एक वृद्धा आश्रम में भर्ती कराए। बाद में दोनों ने कभी भी उनकी कोई सुध नहीं ली और रामनारायण और उनकी पत्नी अपने अंतिम समय तक वृद्धा आश्रम में ही रहते रहे। उनकी झूठी आस पूरी तरह टूट चुकी थी।

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