jivdaya essay in hindi
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जीव दया
सिद्धार्थ जब बचपन में उपवन में टहल रहे थे अचानक एक हंस तीर से बिध्ह होकर लहूलुहान की अवस्था में उनके पैरों के पास आ गिरा Iउन्होंने उसे गोद में उठा लिया और सेवा श्रुषा करने लगे तबतक क्रोध में उनका चचेरा भाई देवदत्त चीखते हुए वहां आ पहुंचा और कहा तू इस हंस को क्यूँ ले रहा है ये मेरा है ,मैंने इसे मारा है सिद्धार्थ ने कहा नहीं मैं इसकी सेवा करके इसे बचाऊंगा ये मेरा हैI फिर यह बात न्यायालय में चली गयी I और राजा शुद्दोधन के दरबार में यही प्रश्न पूछा गया उन्होंने सिद्धार्थ से ही पुछा तो इन्होने उत्तर दिया कि न्याय तो उसी के पक्ष में होना चाहिए जिसे इसने बचाया है जो रक्षक है उस पर सौ सौ भक्षक को कुर्बान कर देना चाहिए क्यूंकि न्याय दया का दानी होता है I इसी प्रकार इस छोटे से उदाहरण से ये समझाना है कि जीव हिंसा न करो I सब में प्राण है Iबलि दी जाने की प्रथा बेकार है I मांस का सेवन न करो क्यूंकि ऊपर वाले ने सभी जीवों को जीने का समानाधिकार दिया है I