कौआ और बुध्धु हंस की कहानी जिसमें दही वाला एक दही का घडा लेकर जा रहा हो।
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बहुत समय की बात है। एक हंस और एक कौआ एक ऊंचे अंजीर के पेड़ पर रहते थे।
दोनों बहुत अच्छे मित्र थे। एक दिन की बात है। गर्मी का मौसम था। सूरजव की जलती किरने उपर पड़ रही थी। एक व्यक्ति दही वाला एक दही का घडा लेकर जा रहा था। सूरज की गर्मी से काफ़ी थक गया और थोड़ी देर क लिए वो अंजीर के पेड़ की छाया मे आकर बैठ गया। पेड़ की छाया मे बैठते ही गर्मी से थके हुए व्यक्ति को नींद आने लगी। वह वही पेड़ के नीचे सो गया। हंस पेड़ पेड़ की ऊंची डाल पर बैठ कर शांति से उस व्यक्ति को देख रहा था। जब हंस उस व्यक्ति के चेहरे पर सूर्य की तेज़ किरणें पड़ती देखी तो उसने सोचा कही धूप के कारण उसकी नींद ना टूट जाए। यह सोच कर उदार और बुध्धु हंस ने अपने पंख फैला दिए। उसके फैले हुए पंखों से के व्यक्ति के चेहरे पर पड़ने वाली धूप रुक गई।
दूसरी ओर कोआ बड़ा ही शरारती था। वह हमेशा दूसरों को तंग करने में लगा रहता था। जब उसने पेड़ के नीचे सोए हुए यात्री को धूप से बचाने वाले हंस को देखा, तब वह उन्हे परेशान करने की तरकीबें सोचने लगा। तभी उसे एक शैतानी सूझी। कौआ यात्री के सिर के ठीक ऊपर वाली डाल पर जा बैठा और मल-त्याग कर तेजी से ऊडं गया। कुछ देर बाद यात्री की नींद खुल गई। उसने महसूस किया कि उसके चेहरे पर कुछ गिरा हुआ है। उसने सोचा यह ज़रुर पेड़ पर बेठे किसी दुष्ट पक्षी का काम है। कौआ तो पहले ही पेड़ से उड़ गया था। अब पेड़ पर केवल हंस बैठा था। व्यक्ति ने जेसे ही उपर नज़र डाली, उसे ऊंची डाली पर बैठा हंस दिखाई दिया. व्यक्ति को पता नहीं था हंस ने उसे धूप से बचाया है। व्यक्ति ने सोचा यही वो पक्षी है जिसने मुझे गंदा किया। इसे तो सज़ा मिलनी चाहिए। 'यह सोचकर उसने एक बड़ा सा पत्थर उठाकर हंस को मार दिया । पत्थर सीधा जाकर हंस के कोमल सिर मे जा लगा। बेचारा हंस घायल होकर ज़मीन पर आ गिरा और कुछ देर तक तड़पते हुए उसकी मृत्यु हो गयी। हंस को एक ऎसे अपराध के लिए अपनी जान देने पड़ी, जो उसने किया ही नहीं था। उसकी भूल तो बस इतनी थी कि उसने उस दुष्ट कौए पर विश्वास कर उस से दोस्ती की थी। हमें दुष्ट और धूर्त के साथ रहने से सदा बचना चाहिए।