की आत्मकथा jutanका सार बताते हैं
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जूठन का सारांश
'जूठन' दलित जीवन की मर्मान्तक पीड़ा का दस्तावेज है। जीवन की सुख-सुविधा और तमाम नागरिक सहूलियतों से वंचित दलित जीवन की त्रासदी उनके व्यक्तिगत वजूद से लेकर घर-परिवार, बस्ती और पूरी सामाजिक व्यवस्था तक फैली हुई है। दलितों का जीवन ऐसा था कि कोई सामन्त व सेठ-साहूकार दलितों को नाम से पुकारने की किसी को आदत नहीं थी।
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