क) अन्तस्थवर्णा: कति सन्ति के च ते ?
ख) मनुष्यस्य ....... हस्तौ भवत: ।
ग) मानव,नर,देव,छात्रा,छात्र,रमा,लता,माला शब्दानां प्रथमाया रूपावलीं लिखत ।
घ) शब्दनिर्माणं कुरूत ।
ङ) अध्यापक,अाचार्य,गायक,नायक,चटक,छात्र शब्दानां स्त्रीलिङ्गिरूपं लिखत ।
च) महादेव इति शब्दस्य वचनम् किम् ?
छ) किम्-किम् मेलयित्वा त्रिफला निर्माणं कुर्वन्ति?
ज) फलानि इति शब्दस्य वचनम् किम् ?
झ) बिल्वपत्रे कति पत्राणि सन्ति ?
ञ) महादेवस्य कती मुखानि भवन्ति ?
ट) ज् इति वर्णस्य वर्ग: क: ?
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sorry I don't know Hindi please tell me in other languages
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लाक्षणिकता, रसात्मक लालित्य छायावाद युग की भाषा की अन्यतम विशेषताएं है। हिन्दी काव्य में छायावाद युग के बाद प्रगतिवाद युग (1936 ई०-1946 ई०) प्रयोगवाद युग (1943 से) आदि आए। इस दौर में खड़ी बोली का काव्य भाषा के रूप में उत्तरोत्तर विकास होता गया।
पद्य के ही नहीं, गद्य के संदर्भ में भी छायावाद युग साहित्यिक खड़ी बोली के विकास का स्वर्ण युग था। कथा साहित्य (उपन्यास व कहानी) में प्रेमचंद, नाटक में जयशंकर प्रसाद, आलोचना में आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने जो भाषा-शैलियाँ और मर्यादाएं स्थापित की उनका अनुसरण आज भी किया जा रहा है। गद्य-साहित्य के क्षेत्र में इनके महत्व का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि गद्य-साहित्य के विभिन्न विधाओं के इतिहास में कालों का नामकरण इनके नाम को केन्द्र में रखकर किया गया है, जैसे उपन्यास के इतिहास में प्रेमचंद-पूर्व युग, प्रेमचन्द युग, प्रेमचंदोत्तर युग; नाटक के इतिहास में प्रसाद-पूर्व युग, प्रसाद युग, प्रसादोत्तर युग; आलोचना के इतिहास में शुक्ल-पूर्व युग, शुक्ल युग, शुक्लोत्तर युग।