(क) अस्माकं जीवनं कैः समं भवतु?
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वृक्षः समं भवतु मे जीवनम् । स्थिर रहनेवाले वृक्षों के समान हो मेरा जीवन । ... उस वृक्षों के समान हो मेरा जीवन । जन्मकाल से ही समर्पण का भाव मरण तक लोक को हित के लिए जिसका हो जीवन , जिसका जीवन मर कर भो सार्थक हो उस वृक्षों के समान हो मेरा जीवन ।
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