Hindi, asked by arvya2006, 9 months ago

काबा फिरि कासी भया, रामहिं भया रहीम।
मोट चून मैदा भया, बैठि कबीरा जीम।6। इस साँखी का भाव सौंदर्य दो ​

Answers

Answered by Rounak4407E
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उत्तर:-

काबा ही बदलकर काशी हो जाती है और राम ही रहीम होते हैं। यह वैसे ही होता है जैसे आटे को पीसने से मैदा बन जाता है, जबकि दोनों गेहूं के हि रूप हैं। इसलिए चाहे आप काशी जाएँ या काबा जाएँ, राम की पूजा करें या अल्लाह की इबादत करें हर हालत में आप भगवान के ही करीब जाएँगे।

Regards

#Rounak ^_^

Answered by AnkitaSahni
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"काबा फिरि कासी भया, रामहिं भया रहीम।

मोट चून मैदा भया, बैठि कबीरा जीम।" -  इस साँखी का अर्थ सहित व्याख्या -

  • कबीरदास कहते हैं कि हे मानव! सम्प्रदाय के आग्रहों को छोड़कर मध्यम मार्ग को अपनाने पर काबा काशी हो जाता है और राम रहीम बन जाते हैं।
  • सम्प्रदायों की रूढ़ियाँ समाप्त हो जाती हैं , ईसी के साथभेदों का मोटा आटा अभेद का मैदा बन जाता है।
  • हे कबीर! तू अभेद रूपी मैदे का भोजन कर, स्थूल भेदों के द्वन्द्व में न पड़।

#SPJ3

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