Hindi, asked by st965145, 1 month ago

काबा फिरि कासी भया, रामहि भया रहीम मोटवून मैदा भया, बैठि कबीरा जीम । 1. कबीर ने कावा और कासी के महत्व को किस प्रकार व्यक्ति किया है​

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Answered by simransingh8810
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Answer:

जब व्यक्ति हिन्दू और मुस्लिम के भेद से ऊपर उठ जाता है तो अब तक जिसे वह मोटा आटा समझता था वह मैदा के समान हो गया है। जिसे भोजन के रूप में ग्रहण किया जा सकता है। वस्तुतः आटा वही है बस भेद है तो उसे समझने का, और ऐसे ही धर्म के आधार पर व्यक्तियों का भेद हो जाता है और वे अपने इष्ट को सर्वोच्च मानते हैं लेकिन सभी का मालिक एक ही होता है । धार्मिक मतभेद को मोटे चून के समान बताया गया है जो खाने में अखाद्य होता है, लेकिन जब सतगुरु के माध्यम से गुरु ज्ञान की प्राप्ति हो जाती है तब फिर यह भेद भी समाप्त होने लगता है और समभाव आने लगता है, जीव को समझ में आने लगता है की यह बंटवारा हमारे द्वारा ही पैदा किया गया है जबकि सभी का मालिक एक ही है । अब उसे राम कहो या रहीम । काबा काशी हो जाने का भाव यही है की धर्म सभी के एक ही हैं और मालिक भी एक ही । कबीर दास जी का जन्म भी एक मुस्लिम परिवार में हुआ था और उनके लिए काबा का महत्त्व रहा की वह बहुत ही पवित्र स्थल है लेकिन आत्मज्ञान प्राप्ति के उपरान्त काबा काशी में बदल गया है । काबा का काशी में बदल जाना वैसा ही हुआ जैसे मोटा अनाज (गेंहू ) को पीसने के बाद वह मैदा में तब्दील हो जाता है । अब जब समझ में आ गया है तो बैठकर भरपेट जीमने (भोजन ग्रहण करने ) में ही बुद्धिमत्ता है इसलिए क्यों ना भोजन को जी भर के कर लिया जाय, भाव है की राम रस का सुमिरण जी भर के कर लेना चाहिए । राम और रहीम का भेद समाप्त हो जाने पर जीवन बहुत ही सरल और सुगम हो जाता है और समस्त दुविधाएं दूर होने लगती हैं ।

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