काबा काशी कैसे हो गया
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काशी-काबा एक है, एक ही राम-रहीम...
3 वर्ष पहले
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हम हिंदू हों, मुसलमान हों या सिख... अपने-अपने धर्म में अलग-अलग मान्यताओं से जिसे भी पूजें, वह परमशक्ति एक ही है। यही तो मायने हैं एकै राम रहीम का। गांधी जी ने जो बात लोगों को समझाने की कोशिश की, वही बात 500 साल पहले कबीर ने अपने पद ‘काशी काबा एक है, एक ही राम रहीम...’ में कही। कुछ इसी तरह की बातों के साथ लोक गायक पद्मश्री प्रहलाद टिपाणिया ने श्रोताओं के साथ संवाद करते हुए भजन संध्या ‘एकै राम-रहीम’ की शुरुआत की। स्वराज संस्थान संचालनालय ने शहीद भवन में इसका आयोजन किया।
कबीर कुआं है पनिया लिहे अनेक
गायन की शुरुआत प्रहलाद टिपाणिया ने महात्मा गांधी के प्रिय भजन ‘वैष्णव जन तो...’ से की। उन्होंने प्रकृति के गूढ़ ज्ञान को बताते कबीर पद ‘कबीर कुआं एक है पनिया लिहे अनेक, बर्तन काहे आंतरा पर नीर सब में एक...’ पेश किया।
3 वर्ष पहले
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हम हिंदू हों, मुसलमान हों या सिख... अपने-अपने धर्म में अलग-अलग मान्यताओं से जिसे भी पूजें, वह परमशक्ति एक ही है। यही तो मायने हैं एकै राम रहीम का। गांधी जी ने जो बात लोगों को समझाने की कोशिश की, वही बात 500 साल पहले कबीर ने अपने पद ‘काशी काबा एक है, एक ही राम रहीम...’ में कही। कुछ इसी तरह की बातों के साथ लोक गायक पद्मश्री प्रहलाद टिपाणिया ने श्रोताओं के साथ संवाद करते हुए भजन संध्या ‘एकै राम-रहीम’ की शुरुआत की। स्वराज संस्थान संचालनालय ने शहीद भवन में इसका आयोजन किया।
कबीर कुआं है पनिया लिहे अनेक
गायन की शुरुआत प्रहलाद टिपाणिया ने महात्मा गांधी के प्रिय भजन ‘वैष्णव जन तो...’ से की। उन्होंने प्रकृति के गूढ़ ज्ञान को बताते कबीर पद ‘कबीर कुआं एक है पनिया लिहे अनेक, बर्तन काहे आंतरा पर नीर सब में एक...’ पेश किया।
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