काबा और काशी में क्या समानता है ?
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हम हिंदू हों, मुसलमान हों या सिख... अपने-अपने धर्म में अलग-अलग मान्यताओं से जिसे भी पूजें, वह परमशक्ति एक ही है। गांधी जी ने जो बात लोगों को समझाने की कोशिश की, वही बात 500 साल पहले कबीर ने अपने पद 'काशी काबा एक है, एक ही राम रहीम...' में कही
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काबा फिर कासी भया, राँमहि भया रहीम। मोट चून मैदा भया, बैठि कबीरा जीम॥ अर्थ सहित व्याख्या कबीरदास कहते हैं कि हे मानव! सम्प्रदाय के आग्रहों को छोड़कर मध्यम मार्ग को अपनाने पर काबा काशी हो जाता है और राम रहीम बन जाते हैं। सम्प्रदायों की रूढ़ियाँ समाप्त हो जाती हैं। भेदों का मोटा आटा अभेद का मैदा बन जाता है। हे कबीर! तू इस अभेद रूपी मैदे का भोजन कर, स्थूल भेदों के द्वन्द्व में न पड़
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