Hindi, asked by tomngopansa1995, 10 months ago

(क ) भिक्त आंदोलन और रविदास​

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Answered by Anonymous
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संत गुरु रविदास का आन्दोलन भक्ति आन्दोलन नहीं, बल्कि मूलनिवासी बहुजन समाज के लिए ब्राहमण-वाद से मुक्ति का आन्दोलन था जिसे हिन्दी साहित्य मे भक्ति आन्दोलन से जोड़ दिया जाता है, वह वास्तव मे ब्राहमण-वाद,पाखंडवाद और गैर-बराबरी के विरुद्ध विद्रोह था, जिसको संत रविदास, संत कवीर दास जी, गुरुनानक, संत चोखामेला, गुरु नारायना, गुरु जी जैसे क्रांतिकारी संतो और गुरुओ ने अपने अपने-अपने से तरीके से अपने-अपने समय मे चलाया था। असल में वह तथागत बुद्ध के ही आन्दोलन का प्रतिरूप था, जिसे भक्ति आन्दोलन की ज्ञानाश्रयी शाखा बोल कर हिन्दुइस्म के साथ जोड़ दिया गया है जबकि इनके विचार हिन्दू धर्म की जाति व्यवस्था, कर्म कांड, बहुदेव वाद, छूआछूत, मूर्ति पुजा, तीर्थ-व्रत, साकार ईश्वर इत्यादि के बिरुद्ध है और इन संतो और गुरुओ का उद्देश्य ब्राहमण-वाद के विरुद्ध विद्रोह कर ब्राहमण-वाद की मानासिक, रूप से गुलाम बनाई गयी मूलनिवासी जनता को मुक्ति दिलाने का था। कई विद्वानो का मानना है आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने संत कबीर और रविदास का मूल्यांकन ठीक से नही किया और इनके स्थान पर तुलसी दास को महिमामंडित किया।

आज भी सन्त रविदास के उपदेश समाज के कल्याण तथा उत्थान के लिए अत्यधिक महत्त्वपूर्ण हैं। उन्होंने अपने आचरण तथा व्यवहार से यह प्रमाणित कर दिया है कि मनुष्य अपने जन्म तथा व्यवसाय के आधार पर महान नहीं होता है। विचारों की श्रेष्ठता, समाज के हित की भावना से प्रेरित कार्य तथा सदव्यवहार जैसे गुण ही मनुष्य को महान बनाने में सहायक होते हैं। इन्हीं गुणों के कारण सन्त रविदास को अपने समय के समाज में अत्याधिक सम्मान मिला और इसी कारण आज भी लोग इन्हें श्रद्धापूर्वक स्मरण करते हैं। संत कवि रविदास उन महान सन्तों में अग्रणी थे, जिन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से समाज में व्याप्त बुराइयों को दूर करने में महत्त्वपूर्ण योगदान किया। इनकी रचनाओं की विशेषता लोक-वाणी का अद्भुत प्रयोग रही हैं जिससे जनमानस पर इनका अमिट प्रभाव पड़ता है।

गृहस्थाश्रम में रहते हुए भी रविदास उच्च-कोटि के संत थे। उन्होंने समता और सदाचार, मन शुद्धि पर बहुत बल दिया। सत्य को शुद्ध रूप में प्रस्तुत करना ही उनका ध्येय था। उनका सत्यपूर्ण ज्ञान में विश्वास था। परम तत्त्व सत्य है, जो अनिवर्चनीय है । संत कबीर ने उन्हे “संतनि में रविदास संत” कहकर उनका महत्त्व स्वीकार किया है।

संत रविदास ने संत कबीर के साथ मिलकर ब्राहमण-वाद को खुली चुनौती दी और मूलनिवासी समाज को उत्तर प्रदेश से लेकर राजस्थान और पंजाब तक अपने वाणी जागृत कर से ब्राह्मण वाद से मुक्ति दिलाई।

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