Hindi, asked by triptisingh095, 1 year ago

कुंभ क्या होता है ?
यह कहाँ -कहाँ लगता है?
प्रयागराज का महत्त्व क्यों है?

Answers

Answered by VShukla1
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कुम्भ मेला

प्राचीनतम धर्म सनातन धर्म के अनुसार भारत मे मनाया जाने वाला विश्व का सबसे बड़ा धार्मिक मेला है

कुंभ पर्व हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण पर्व है, जिसमें करोड़ों श्रद्धालु कुंभ पर्व स्थल हरिद्वार, प्रयाग, उज्जैन और नासिकमें स्नान करते हैं।



पृथ्वी के चार स्थानों (प्रयाग, हरिद्वार, उज्जैन, नासिक) पर कलश से अमृत बूँदें गिरी थी

प्रयागराज का महत्त्व

कपितामह ब्रहृमाजी ने बहुत खोज की, कि पृथ्वी पर सबसे श्रेष्ठ तीर्थ कौन सा है। बहुत खोजने के पश्चात उनको यही क्षेत्र सबसे श्रेष्ठ जान पड़ा। इसीलिए यहां उन्होंने प्रकृष्ट-प्रकृष्ट याग यज्ञ किये। इसलिए इस स्थान का नाम प्रयाग पड़ा। सब तीर्थो ने ब्रहृमाजी से प्रार्थना की। प्रभो! हम सब तीर्थो में जो सबसे श्रेष्ठ हो, उसे आप सबका राजा बना दें जिसकी आज्ञा में हम सब रहें।

तब ब्रहृमा जी ने इन प्रयाग को ही सब तीर्थो का राजा बना दिया। उसी दिन से सब तीर्थ इनके अधीन रहने लगे और ये तीर्थराज कहलाये। कोस्वामी तुलसीदास जी ने अपने रामचरित मानस में इन तीर्थो के राजा का कैसा सुंदर सजीव वर्णन किया है। राजा की जितनी छत्र-चंवर आदि सामग्री है वे इनकी बड़ी सुंदर है।
प्रात प्रातकृत करि रघुराई, तीरथराजु दीख प्रभु जाई।।

सचिव सत्य श्रद्धा प्रिय नारी, माधव सरिस मीत हितकारी।।

चार पदारथ भरा भंडारू, पुन्य प्रदेश देश अति चारू।।

इन थोड़े शब्दों में गोस्वामी जी ने तीर्थो के राजा का कैसा सुंदर चित्र खींच दिया हे। प्रयागराज सब तीर्थो के राजा हें इसलिए समस्त तीर्थ आकर इनकी उपासना करते हैं। पृथ्वी का जहां स्त्री रूप से वर्णन किया गया है वहां प्रयाग को पृथ्वी माता का जघन स्थान बताया है। संपूर्ण शरीर में स्त्रियों के जघन स्थान जिस प्रकार सबसे श्रेष्ठ है उसी प्रकार यह तीर्थ भी सबसे श्रेष्ठ है। यहीं पर अक्षय वट है्र जिसका क्षय प्रलय में भी नहीं होता। प्रलय के समय इसी अक्षयवट पर बाल मुकुंद भगवान छोटे शिशु का रूप रखकर अपने चरण के अंगूठे को मुख में देकर क्रीड़ा करते हैं। इसलिए इस अक्षयवट के दर्शनों का भी अनंत फल है। ब्रंा जी इस क्षेत्र में बहुत याग यज्ञ किये और वे इस क्षेत्र के अधिष्ठातृ देव बनकर रहे, इसलिए इस क्षेत्र का नाम प्रजापति क्षेत्र भी है। शिव जी का भी यह क्षेत्र है। विष्णु भगवान तो अक्षयवट पर नित्य निवास करते हैं। यहां भगवान माधव का मुख्य क्षेत्र है। यहीं माधव जी बारह रूप रखकर रहते हैं। पहले इस क्षेत्र में यमुना जी बहती थीं। गंगा जी पीछे आयीं। गंगा जी अब आयीं तो यमुना जी अर्धय लेकर आगे आई, किन्तु गंगा जी ने उनका अर्धय स्वीकार नहीं किया। यमुना जी जब कारण पूछा तो गंगा जी ने कहा-तुम मुझसे बड़ी हो, मैं तुम्हारा अर्धय ग्रहण करूंगी तो मेरा तो नाम ही आगे मिट जायेगा मैं तुम में लीन हो जाऊंगी। यह सुनकर यमुना जी ने कहा-तुम मेरे घर अतिथि बनकर आयी हो इसलिए तुम मेरा अर्धय स्वीकार कर लो मैं ही तुम में मिल जाऊंगी। चार सौ कोस तक तुम्हारा ही नाम रहेगा। फिर मैं तुमसे पृथक हो जाऊंगी। यह बात गंगा जी मान ली। इसलिए यहां गंगा, यमुना, सरस्वती तीनों मिली हैं इससे इसे मुक्त त्रिवेणी कहते हैं। बंगाल में फिर गंगा यमुना सरस्वती की तीनों धाराएं पृथक-पृथक होकर बहती हैं। इसलिए उस तीर्थ का नाम मुक्त त्रिवेणी है। वहां भी बड़ा मेला लगता है। त्रिवेणी स्टेशन भी है और गंगा, यमुना सरस्वती तीनों धाराएं पृथक-पृथक दिखायी देती हैं। अयोध्या, मथुरा, मायावती, काशी, कांची, उज्जैन, और द्वारका ये सात परम पवित्र नगरी मानी जाती हैं। ये सातों तीर्थ महाराजाधिराज प्रयाग की पटरानियां हैं। इन्हीं सब कारणों से भूमण्डल के समस्त तीर्थो में प्रयागराज सबसे श्रेष्ठ है। यहां माघ मकर में प्रतिवर्ष एक महीने का बड़ा मेला लगता है। प्रयागराज में माघ पावन क्षेत्र में महर्षि भरद्वाज जी निवास करते थे। यही से रामचरित मानस की सुरसरि धारा बही है, जिसने समस्त संसार को भक्ति रस में डुबा दिया है।







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आशा करता हूँ उत्तर अच्छा लगेगा
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triptisingh095: कमेंट दे ना आप
VShukla1: isame question me type nhi hota
VShukla1: nhi horaha type
triptisingh095: अच्छा ठीक है
triptisingh095: पर आप थोड़ा विस्तार में और हर प्रश्न का अलग अलग उत्तर दीजियेगा
VShukla1: जी हा जरूर देंगे
triptisingh095: कर दिया
triptisingh095: Answer do jaldi
triptisingh095: Do answer pl
triptisingh095: Plz
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