(क) भावना ने बहुत मेहनत कर नौकरी प्राप्त की (संयुक्त वाक्य)
(ख) बच्चे का खिलौना टूट गया और वह रोने लगा (सरल वाक्य)
(ग) मॉरीशस की स्वच्छता देखकर मन प्रसन्न हो गया ( भाववाच्य)
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मेरा नाम आशीष बिहानी है। मैं बीकानेर से हूँ और वर्तमान में कोशिका एवं आणविक जीव विज्ञान केंद्र, हैदराबाद में पी-एच. डी. कर रहा हूँ। मेरा पहला संग्रह “अंधकार के धागे” हिन्द-युग्म द्वारा दिसंबर २०१५ में प्रकाशित किया गया। इसके अलावा मेरी कविताएँ ‘संभाव्य’, ‘अनुनाद’, ‘समालोचन’, ‘यात्रा’, ‘गर्भनाल’ द्वारा प्रकाशित की गयीं हैं।
रसूल हमजातोव ने ‘मेरा दागिस्तान’ में लिखा है – ‘यह मत कहो कि मुझे विषय दो, यह कहो कि मुझे आँखें दो।’ कवि के पास यह आँख होना बहुत जरुरी होता है। युवा कवि आशीष बिहानी की कविताओं को पढ़ते हुए इस बात का स्पष्ट आभास हुआ कि उनके पास यह आँख है। हिन्दी कविता में ऐसे कवियों की फेहरिश्त में अब आशीष का नाम भी पुख्तगी से जुड़ गया है जो विज्ञान की पढाई करने के साथ-साथ कविता भी लिख रहे हैं। कल्पना के साथ यथार्थ की जमीन से जुड़े रहने की तहजीब है यह ‘विज्ञान और साहित्य का संगम’। यह सुखद है कि आशीष के पास इस संगम की समृद्ध थाती है।
मानव द्वारा आविष्कृत महत्वपूर्ण तकनीकी चीजों की सूची अगर बनायी जाय तो उसमें रेल का स्थान शीर्ष आविष्कारों में जरुर शामिल होगा। रेल जिसने न केवल मानव जीवन को गति प्रदान किया, जिसने न केवल उसे प्रगति की यात्रा में एक महत्वपूर्ण मोड़ प्रदान किया बल्कि मानव समाज और उसके सोच पर भी व्यापक असर डाला। साहित्य भला इससे अलग और अछूता कैसे रह पाता। आशीष ने ‘रेल’ शीर्षक से कई खण्डों में कुछ उम्दा कविताएँ लिखी हैं। वे जानते हैं कि रेल की आवाज उन्हें भले ही कर्कश लगे जो उसे कभी-कभार सुन पाते हैं। लेकिन उनके लिए तो यह उस सांस की तरह है जो अपनी जिन्दगी इसी के साथ या इसी के पास बिताते हैं। रेल की आवाज उनके सपने में कोई खलल नहीं डाल पाती। तो आज पहली बार पर पढ़ते हैं आशीष बिहानी की कुछ नयी कविताएँ।