केंचुए में परिसंचरण तंत्र का सचित्र वर्णन कीजिये।
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अंग व अंगतंत्र : जब अनेक उत्तक संगठित होकर कोई विशिष्ट कार्य करते है तो उत्तकों के इस समूह को अंग कहते है।
जब दो या दो से अधिक अंग मिलकर कोई विशिष्ट कार्य करते है तो अंगो के इस समूह को अंग तंत्र कहते है।
अनेक अंगतंत्र मिलकर सम्पूर्ण जंतु शरीर का निर्माण करते है।
1. केंचुआ (Earthworm in hindi) : यह एनिलिडा संघ का सदस्य होता है।
(i) आवास एवं स्वभाव : यह एक मुक्त , स्थलीय , अकशेरुकी प्राणी है , ये रात्रिचर प्राणी है। दिन में ये बिलों में रहते है। बिल मिट्टी को छेदकर व निगलकर बनाते है। खेतों व बगीचों की जमीन में उपस्थित मिट्टी , मिट्टी की छोटी छोटी गोलियों के बीच इनको देखा जा सकता है। इनके उत्सर्जी मल को वर्गीकम्पोस्ट कहते है।
फेरेटिमा लुम्ब्रीकस सामान्य भारतीय केंचुआ है।
(ii) आकारिकी :
आकृति : शरीर लम्बा व बेलनाकार होता है।
रंग : हल्का भूरा रंग होता हैं।
खण्ड : लगभग 100 – 120 खंड पाए जाते है।
सतह – पृष्ठ तल पर मध्य रेखा तथा अद्यर तल पर जनन छिद्र पाये जाते हैं।
मुख – शरीर के अग्र भाग में प्रथम खंड एक पाली (lobe) के समान होता है जिसे परिमुख कहते है जिसमे मुख होता हैं।
पर्याणिका : केंचुआ के 14 वें – 16 वें खण्ड तक एक चौड़ी ग्रन्थिल गोलाकार पट्टी होती है जिसे पर्याणिका कहते हैं।
शुक्र ग्राहिका रंध्र : ये 4 जोड़ी होते है जो 5 वे 9 वें खण्ड के अद्यर पाश्र्व भाग में पाए जाते है।
मादा जनन रन्ध्र : यह 14 वें खण्ड के मध्य अद्यर रेखा पर होता हैं।
नर जनन रंध्र – यह 18 वे खण्ड के अद्यर पाशर्व में होता हैं।
वृक्क रन्ध्र : ये प्रथम दो खंडो को छोड़कर सम्पूर्ण शरीर में होते हैं।
शुक्र : प्रथम खंड , अंतिम खंड व पर्याणिका को छोड़कर सभी खंडो S आकृति के शुक्र पाए जाते है जो गति में सहायक होते हैं।
गुदा – यह दरारनुमा खण्ड अंतिम खंड में स्थित होता है।
केंचुए में परिसंचरण तंत्र का सचित्र वर्णन निम्न प्रकार से किया गया है।
केंचुए अनिलिडा संघ का सदस्य है।
इसे किसानों मित्र कहा जाता है क्योंकि इनकी सहायता से मिट्टी की उर्वरता बढ़ जाती है।
केंचुए में बंद प्रकार का परिसरण तंत्र पाया जाता है।
परिसरण तंत्र के भाग निम्नलिखित हैं।
- रुधिर वाहिकाएं - रुधिर वाहिकाएं रुधिर को आहार नलिका तंत्रिका रज्जू तथा शरीर भित्ति तक पहुंचाती हैं।
- रुधिर ग्रंथियां - रुधिर ग्रंथियां चौथे, पांचवे व छठवें खंड में पाई जाती है। इनका कार्य हीमोग्लोबिन व रुधिर कणिकाओं का निर्माण करना है।
- रुधिर - रुधिर में रक्त कणिकाएं व प्लास्मा होता है।
- हृदय - केंचुए में हृदय नलिकाकर होता है। चार जोड़ी नलिका कार असंकुचन शील हृदय होते है। ये हृदय सातवे, नौवें, बारहवें व तेरहवें खंड में पाए जाते है।
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