कंचे जब जार से निकलकर अप्पू के मन की कल्पना में समा जाते हैं, तब क्या होता है?
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कंचे जब जार से निकलकर अप्पू के मन की कल्पना में समा जाते हैं तो वह उनकी ओर पूरी तरह से सम्मोहित हो जाता है। उसे लगता है की जैसे कंचों का जार बड़ा होकर आसमान-सा बड़ा हो गया और वह उसके भीतर चला गया।
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कंचे जब जार से निकलकर अप्पू के मन की कल्पना में समा जाते हैं तो देखते ही देखते जार आसमान जैसा सा बड़ा होने लगता है!अब अप्पू भी उसी जार के अंदर आ जाता है! वँहा कोई और नहीं है!वह कंचे चारों और बिखेरता हुआ मजे से खेलने में व्यस्त हो जाता है!
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