काच की चुडिया पर निबंध
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चूड़ियाँ (Bangles) एक पारम्परिक गहना है जिसे भारत सहित दक्षिण एशिया में महिलाएँ कलाई में पहनती हैं। चूड़ियाँ वृत्त के आकार की होती हैं। चूड़ी नारी के हाथ का प्रमुख अलंकरण है, भारतीय सभ्यता और समाज में चूड़ियों का महत्वपूर्ण स्थान है। हिंदू समाज में यह सुहाग का चिह्न मानी जाती है। भारत में जीवितपतिका नारी का हाथ चूड़ी से रिक्त नहीं मिलेगा।भारत के विभिन्न प्रांतों में विविध प्रकार की चूड़ी पहनने की प्रथा है। कहीं हाथीदाँत की, कहीं लाख की, कहीं पीतल की, कहीं प्लास्टिक की, कहीं काच की, आदि। आजकल सोने चाँदी की चूड़ी पहनने की प्रथा भी बढ़ रही है। इन सभी प्रकार की चूड़ियों में अपने विविध रंग रूपों और चमक दमक के कारण काच की चूड़ियों का महत्वपूर्ण स्थान है। सभी धर्मों एवं संप्रदायों की स्त्रियाँ काच की चूड़ियों का अधिक प्रयोग करने लगी हैं।काच के बनाने में रेता, सोडा और कलई का प्रयोग होता है। रेता एक रेतीला पदार्थ है जिसमें मिट्टी का अंश कम और पत्थर का अधिक होता है। यह दानेदार होता है। कहीं कहीं यह पत्थर को पीसकर भी बनाया जाता है। काच बनाने के काम में आनेवाला रेता भारत के कई प्रांतों में मिलता है यथा : राजस्थान, मध्यभारत, हैदराबाद, महाराष्ट्र आदि। राजस्थान में कोटा, बूँदी और जयपुर की पहाड़ियों में अधिक मिलता है। राजस्थान में बसई के आस पास मिलनेवाले रेता में .046 प्रतिशत लौह का समावेश होता है और बूँदी के रेतों में .6 तक का कम लौहवाला रेता सफेद कांच और अधिक लौहवाला रंगीन काँच बनाने के काम में आता है।
जिस प्रकार की रासायनिक अर्हता का सोडा काच बनाने के काम आता है उसी प्रकार का प्राकृतिक पदार्थ तो दक्षिण अफ्रीका के केनियाँ प्रांत में मिलता है। भारत में सौराष्ट्र और पोरबंदर में काच के अनुकूल रासायनिक अर्हतावाला सोडा बनाया जाता है। भारत की बंजर भूमि में स्थान स्थान पर रेह मिलता है। रेह का प्रयोग कपड़े धोने में भी होता है। यही रेह इस सोडा के बनाने के काम आता है। कांच के तीनों पदार्थों में से यही अधिक मूल्यवान है।
कलई, को सफेदी भी कहते हैं। प्राचीन काल में इसका एक नाम सुधा भी था। इसका प्रयोग मकानों के पोतने में अधिक होता है। यह एक कोमल पत्थर को जलाकर बनाई जाती है। राजस्थान का गोटनस्थान कोमल और मसृण कलई के लिये प्रसिद्ध है।
कलई के विकल्प का भी पता चल चुका है, कलई के स्थान में संगमरमर की पिष्टि (चूरा) का भी प्रयोग होने लगा है। कुछ काच निर्माताओं की मान्यता है कि मर्मरपिष्टि के संयोग से काच में विशेषता आती है। कलई की अपेक्षा यह सस्ती अवश्य पड़ती है।