कंचा पाठ से संबंधित अनुच्छेद
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कंचा सार वसंत भाग - 1 (Summary of Kancha Vasant) इस कहानी में लेखक श्री टी० पद्मनाभन ने बालजीवन का सुंदर चित्रण किया है| कैसे एक बालक अपने खेलने के सामान बाकी अन्य चीज़ों से ऊपर रखता है और किसी भी कीमत पर खोना नहीं चाहता| अप्पू हाथ में बस्ता लटकाए नीम के पेड़ों की घनी छाया से गुजर रहा था।
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इसके लेखक मलयालम कवि टी. पद्मनाभन है। कंचा कहानी मूल रूप से मलयालम भाषा में लिखी गई है। कंधे पर बस्ता लटकाए अप्पू अपने आप में मस्त विद्यालय की ओर जा रहा था। सियार और कौआ की कहानी उसके दिमाग में चल रही थी। सियार ने कौए से कहा-"प्यारे कौए, एक गाना गाओ तो तुम्हारा गाना सुनने के लिए बेचैन हो रहा हूँ।" कौए ने गाने के लिए मुंह खोला तो उसके मुँह में दबी रोटी का टुकड़ा नीचे गिर गया। सियार रोटी का टुकड़ा लेकर भाग गया। अप्पू सोचकर हँस दिया। 'बुद्धू कौआ" सियार की चालाकी भी न समझ पाया। रास्ते में चलते-चलते उसने एक दुकान की अलमारी में काँच के बड़े-बड़े जार देखे जिनमें चाकलेट, पिपरमेंट और बिस्कुट थे। उसकी नजर उन पर तो नहीं गई। वह आकर्षित हुआ उस जार से जिसमें कंचे रखे हुए थे। हरे लकीर वाले बढ़िया सफेद गोल कंचे। बड़े आँवले के समान थे। वह कंचों की दुनिया में ही खो गया। उसे देखते-देखते लगा कि जार आसमान-सा बड़ा होने लगा है। वह भी उस जार के भीतर आ गया।
वैसे भी उसे अकेले खेलने की आदत थी क्योंकि छोटी बहन की मृत्यु के बाद वह अकेला ही खेलता था। जब दुकानदार ने उसे आवाज लगाई कि लड़के तू तो जार को नीचे ही गिरा देगा तो वह चौंक उठा। दुकानदार ने पूछा कि क्या कंचा चाहिए? तो उसने नहीं लेना' सोचकर सिर हिला दिया। स्कूल की घंटी बजी वह बस्ता थामे दौड़ पड़ा क्योंकि उसे मालूम था कि देर से पहुँचने वालों को पिछले बैंच पर बैठना पड़ता है। उस दिन देर से पहुँचने के कारण वह स्वयं ही सबसे पीछे वाली बेंच पर बैठ गया।
पिछले बेंच पर बैठने पर भी वह सभी मित्रों को देखने लगा कि कौन कहाँ बैठा है। रामन, अन्नु, मल्लिका उसने सबको देखा लेकिन न जाने क्यों उसकी आँखें जॉर्ज को खोज रही थीं उसका दिमाग तो कंचों में खोया था और उसे पता था कि कंचों में जॉर्ज को कोई हरा नहीं सकता। रामन से उसे पता चला कि वह आज बीमार है इसलिए स्कूल नहीं आया। अप्पू ने हड़बड़ी में पुस्तक खोली और जाना कि मास्टर जी 'रेलगाड़ी' का पाठ पढ़ा रहे है। वे बताते जा रहे है कि तुम में से कई बच्चों ने रेलगाड़ी देखी होगी। इसे भाप की गाड़ी भी कहते हैं। इसमें पानी डालने के स्थान को बॉयलर कहते हैं। यह एक लोहे का बड़ा पीपा होता है। इस तरह से उन्होनें रेलगाड़ी का पाठ पढ़ाया।
मास्टर जी भले ही पाठ को पढ़ाते और समझाते जा रहे थे लेकिन अप्पू न जाने कहाँ खोया था। उसे तो वही कंचे बार-बार याद आ रहे थे। वह सोच रहा था कि जॉर्ज ठीक हो जाए तो उसके साथ खेलेगा। मास्टर जी उसके चेहरे से पहचान गए कि अप्पू का ध्यान पढ़ाई में नहीं है। वे उसके पास गए और पूछना चाहा कि वे क्या पढ़ा रहे है? वह अचानक बोल उठा? 'कंचा' कक्षा के बच्चे हैरान थे कि यह क्या हुआ। कंचा सुनकर मास्टर जी क्राधित हो गए अप्पू को मास्टरजी ने बेंच पर खड़ा करा दिया लेकिन उसका ध्यान अभी भी कंचों में ही था। पाठ समाप्त हो गया बच्चे पाठ से सबधित कठिनाइयाँ मास्टर जी से पूछने लगे लेकिन अप्पू तो इस सोच में खोया था कि कंचे खरीदे कैसे ? क्या जॉर्ज को साथ ले जाने पर दुकानदार कंचे देगा? मास्टर जी ने उससे पूछा-'क्या सोच रहे हो? तो उसके मुँह से निकला-'पैसे'। मास्टर जी ने पूछा पैसे किसके लिए चाहिए, क्या रेलगाड़ी के लिए? वह बोला-'रेलगाड़ी नहीं कंचा।' चपरासी के कक्षा में आने के कारण मास्टर जी ने उसके इस उत्तर का जवाब न दिया।
चपरासी ने कक्षा में मास्टर जी को एक फीस का नोटिस दिया। मास्टर जी नोटिस पढ़कर कहने लगे कि जो फीस लाए हैं वे ऑफिस में जमा करवा दें। सब बच्चों के साथ, राजन के सचेत करने पर अप्पू भी फीस जमा करवाने जाने लगा। पहले तो मास्टर जी ने मना किया परंतु बाद में जाने दिया। अप्पू ने फीस जमा न करवाई, जबकि पिताजी ने उसे एक रुपया पचास पैसे दिए थे। उसके दिमाग में तो कंचे ही घूम रहे थे सभी बच्चों ने फीस जमा करवा दी लेकिन अप्पू ने फीस जमा न करवाई। जब वह घर जा रहा था तो उसकी चाल की तेजी बढ़ी वह उसी दुकान पर आकर रुका। दुकानदार उसे देखकर हँसा और बोला-'कंचा चाहिए न?' उसने सिर हिला दिया। दुकानदार ने कहा-'कितने कंचे चाहिए?' उसने जेब से एक रुपया पचास पैसे निकाले तो दुकानदार चौंक गया इतने सारे पैसे। साथ ही दुकानदार ने अपने-आप में यह अंदाजा भी लगा लिया कि सब साथियों के मिलकर ले रहा होगा दुकानदार से कंचे लेकर कागज की पोटली छाती से चिपकाए आगे बढ़ने लगा।
अप्पू अपने कंचे देखने चाहे कि सब में लकीरें हैं या नहीं। पोटली खोलते ही सारे कंचे सड़क पर बिखर गए। वह एक-एक कंचे को उठाकर एकत्रित करने लगा हथेली भर गई अब उसने बस्ते में रखने चाहे। अचानक ही सामने से कार आ गई। ड्राइवर को गुस्सा आ रहा था कि उसने रास्ता रोका हुआ है लेकिन वह हँसकर ड्राइवर को भी कंचा दिखाने लगा तो ड्राइवर का गुस्सा भी उसके प्रति प्रेम में बदल गया। वह आज घर देर से पहुँचा तो माँ कुछ परेशान थी लेकिन वह खेल-खेल में माँ की आँखें बंद कर उसे कंचे दिखाने लगा। माँ ने पूछा कि इतने सारे कंचे कहाँ से लाया तो उसने सच बताया कि पिताजी द्वारा दिए फीस के पैसों से खरीदे हैं। पहले तो माँ हैरान हुई कि उसने यह क्या किया लेकिन वह उससे बहुत प्रेम करती थी। उसे कुछ कहना भी नहीं चाहती थी। उसके दिमाग में एक बात घूम रही थी कि कंचे किसके साथ खेलेगा। उसे अपनी मरी हुई बच्ची की याद आ गई और वह रोने लगी। अप्पू को लगा कि माँ को कंचे पसंद नहीं आए वह कहने लगा माँ! "ये कंचे बुरे हैं न!" लेकिन माँ कहने लगी नहीं, अच्छे हैं। वह हँस पड़ा। माँ भी हँस पड़ी। माँ ने उसे गले लगा लिया क्योंकि वह उसे हमेशा खुश देखना चाहती थी। इसलिए माँ.ने उसे डाँटा नहीं।