कुछ कच्चे, कुछ पक्के घर हैं,
एक पुराना ताल है।
सड़क बनेगी, सुनती हूँ,
इसका नंबर इस साल है ।
चखते आना टीले ऊपर
कई पेड़ हैं बेर के ।
आना मेरे गाँव तुम्हें मैं
दूंगी फूल कनेर के ।
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आना मेरे गाँव , तुम्हे मैं
दूँगी फूल कनेर के .
कुछ पक्के , कुछ कच्चे घर हैं ,
एक पुराना ताल है .
सड़क बनेगी , सुनती हूँ -
इसका नंबर इस साल है .
चखते आना , टीले ऊपर
कई पेड़ हैं बेर के .
आना मेरे गाँव , तुम्हे मैं
दूँगी फूल कनेर के .
खड़िया -पाटी -कापी-बस्ते
लिखना पढ़ना रोज है .
खेलें-कूदे कभी न फिर तो
यह सब लगता बोझ है .
कई मुखौटे तुम्हें दिखाउंगी
मिटटी के शेर के .
आना मेरे गाँव , तुम्हे मैं
दूँगी फूल कनेर के .
बाबा ने था पेड़ लगाया ,
बापू ने फल खाए हैं .
भाई कैसे ! उसे काटने
को रहते ललचाए हैं .
मेरे बचपन में ही आए
दिन कैसे अंधेर के .
आना मेरे गाँव , तुम्हे मैं
दूँगी फूल कनेर के .
हँसना - रोना तो लगता ही
रहता है हर खेल में .
रूठे , किट्टी कर ली , लेकिन
खिल उठते हैं मेल में .
मगर देखना क्या होता है
मेरी चिट्ठी फेर के .
आना मेरे गाँव , तुम्हे मैं
दूँगी फूल कनेर के .
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