(क) डॉ० रघुवंश के व्यक्तित्व की किन्हीं तीन विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
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महाकवि कालिदास हमारे राष्ट्रीय कवि थे। वे भारतीय सभ्यता और संस्कृति के प्रतीक थे। इस विशाल तथा विराट देश की संस्कृति कालिदास की वाणी में बोलती है अंग्रेजों के आगमन के समय वह भारत वर्ष संसार की दृष्टि में संस्कृतिविहीन व अंधकारपूर्ण देश समझा जाता था, परन्तु कालिदास की कृतियों ने ही भारत के प्रति विश्व का आदर-भाव जगाने का प्रशंसनीय कार्य किया।
रघुवंश जैसा कि नाम से ही स्पष्ट हैं, इसमें रघु के कुल में उत्पन्न राजाओं का वर्णन किया गया है। इसमें राजा दिलीप, रघु, दशरथ,राम,कुश और अतिथि का विशेष वर्णन किया गया है। वे सभी राजा समाज में आदर्श स्थापित करने में सफल हुए। प्रभुश्री राम का रघुवंश महाकाव्य में विशेष रूप से वर्णन किया गया है।
रघुवंश महाकाव्य
कालिदास की कृतियों के क्रम में रघुवंश महाकाव्य का तीसरा स्थान है। प्रथम दो कृतियां हैं- कुमारसंभव और मेघदूत।
कालिदास के विषय में कहा जाता है कि वे निपट मूर्ख और उजड्ड थे। फिर वे इतने विद्वान और ऐसी अनन्य कृतियों के रचयिता किसी प्रकार बन गए। इस विषय में एक किंवदंति प्रचलित है। उसका सार संक्षेप यही है कि कुछ विद्वानों ने विदुषी विद्योत्तमा की विद्वता से चिढ़कर षड्यंत्र रचा और निपट मूर्ख कालिदास से उसका विवाह करा दिया। विदुषी विद्योत्तमा को जब कालिदास की वास्तविकता का ज्ञान हुआ तो उसने उसके लिए अपने घर के द्वार बंद कर दिए। कालिदास मर्माहत से घर से निकल पड़े और उन्होंने साधना करके विद्यार्जन किया और जब विद्वान बन घर लौटे तो उपने द्वार पर दस्तक दी और कालिदास ने कपाट खटखटाते हुए कहा- द्वारं देहि अनावृत्तं कपाटम् जब यह स्वर विद्योत्तमा को सुनाई दिया तो उसने पूछा ‘अस्ति कश्चिद् वाग् विशेषः।’ अर्थात कौन है, ऐसी उत्कृष्ठ वाणी का विशेषज्ञ ?’
यह प्रचलित है कि अपनी पत्नी के प्रथम वाक्य के तीन शब्दों को लेकर उन्होंने तीन वाक्यों की रचना कर डाली। ‘अस्ति’ शब्द से कुमारसंभव का प्रथम श्लोक ‘कश्चिद्’ से मेघदूत का प्रथम श्लोक और ‘वाक्’ से रघुवंश का प्रथम श्लोक आरंभ किया।