काफल और चेस्टनट किसे कहते हैं?
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इस फल से आदमी रहता है जवान, लेकिन इसकी कहानी पढ़ कर रो देंगे आप
Little indian girl watching Kafal
By: सुनील शर्मा
हॉट ऑन वेब
देवभूमि उत्तराखंड में उगने वाला काफल अपनी खूबियों से सहज ही लोगों को आकर्षित कर लेता है। शरीर को हमेशा जवान रखने वाले इस फल के पीछे एक बहुत ही मार्मिक कहानी है जिसे सुन कर आपकी आंखों में आसूं आ जाएंगे।
कहा जाता है कि उत्तराखंड के एक गांव में एक गरीब महिला रहती थी, जिसकी एक छोटी सी बेटी थी। दोनों एक दूसरे का सहारा थे। आमदनी के लिए उस महिला के पास थोड़ी-सी जमीन के अलावा कुछ नहीं था, जिससे बमुश्किल उनका गुजारा चलता था।
गर्मियों में जैसे ही काफल पक जाते, महिला बेहद खुश हो जाती थी। उसे घर चलाने के लिए एक आय का जरिया मिल जाता था। इसलिए वह जंगल से काफल तोड़कर उन्हें बाजार में बेचती, जिससे परिवार की मुश्किलें कुछ कम होतीं। एक बार महिला जंगल से एक टोकरी भरकर काफल तोड़ कर लाई।
उस वक्त सुबह का समय था और उसे जानवरों के लिए चारा लेने जाना था। इसलिए उसने इसके बाद शाम को काफल बाजार में बेचने का मन बनाया और अपनी मासूम बेटी को बुलाकर कहा, "मैं जंगल से चारा काट कर आ रही हूं। तब तक तू इन काफलों की पहरेदारी करना। मैं जंगल से आकर तुझे भी काफल खाने को दूंगी, पर तब तक इन्हें मत खाना।"
मां की बात मानकर मासूम बच्ची उन काफलों की पहरेदारी करती रही। इस दौरान कई बार उन रसीले काफलों को देख कर उसके मन में लालच आया, पर मां की बात मानकर वह खुद पर काबू कर बैठे रही। इसके बाद दोपहर में जब उसकी मां घर आई तो उसने देखा कि काफल की टोकरी का एक तिहाई भाग कम था। मां ने देखा कि पास में ही उसकी बेटी सो रही है।
सुबह से ही काम पर लगी मां को ये देखकर बेहद गुस्सा आ गया। उसे लगा कि मना करने के बावजूद उसकी बेटी ने काफल खा लिए हैं। इससे गुस्से में उसने घास का गटर एक ओर फेंका और सोती हुई बेटी की पीठ पर मुटी से जोरदार प्रहार किया। नींद में होने के कारण छोटी बच्ची अचेत अवस्था में थी और मां का प्रहार उस पर इतना तेज लगा कि वह बेसुध हो गई।
बेटी की हालत बिगड़ते देख मां ने उसे खूब हिलाया, लेकिन तब तक उसकी मौत हो चुकी थी। मां अपनी औलाद की इस तरह मौत पर वहीं बैठकर रोती रही। उधर, शाम होते-होते काफल की टोकरी फिर से पूरी भर गई। जब महिला की नजर टोकरी पर पड़ी तो उसे समझ में आया कि दिन की चटक धूप और गर्मी के कारण काफल मुरझा जाते हैं और शाम को ठंडी हवा लगते ही वह फिर ताजे हो गए। अब मां को अपनी गलती पर बेहद पछतावा हुआ और वह भी उसी पल सदमे से गुजर गई।
कहा जाता है कि उस दिन के बाद से एक चिडिया चैत के महीने में "काफल पाको मैं नि चाख्यो" कहती है, जिसका अर्थ है कि काफल पक गए, मैंने नहीं चखे...। फिर एक दूसरी चिडिया "पुर्रे पुतई पुर्रे पुर" गाते हुए उड़ती है। इसका अर्थ है "पूरे हैं बेटी, पूरे हैं"...।
ये कहानी जितनी मार्मिक है, उतनी ही उत्तरखंड में काफल की अहमियत को भी बयान करती है। आज भी गर्मी के मौसम में कई परिवार इसे जंगल से तोड़कर बेचने के बाद अपनी रोजी-रोटी की व्यवस्था करते हैं। काफल के महत्व पर एक लोकगीत भी है जिसमें वह खुद को देवताओं के खाने योग्य समझता है। कुमाऊंनी भाषा के एक लोक गीत में तो काफल अपना दर्द बयान करते हुए कहते हैं, "खाणा लायक इंद्र का, हम छियां भूलोक आई पणां। इसका अर्थ है कि हम स्वर्ग लोक में इंद्र देवता के खाने योग्य थे और अब भू लोक में आ गए।"