कागा काको धन हरै, कोयल काको देत।
मीठे बोल सुनाय के, जग अपना कर लेत।।
साधु ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय।
सार सार को गहि रहै, थोथा देइ उड़ाय।।
-कबीर meaning
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कागा काको धन हरै, कोयल काको देत।
मीठे बोल सुनाय के, जग अपना कर लेत।।
साधु ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय।
सार सार को गहि रहै, थोथा देइ उड़ाय।।
भावार्थ — कबीर कहते हैं कि कौवा किसी का धन नहीं लेता, किसी का नुकसान नहीं करता, फिर भी वह किसी को पसंद नहीं है। उसके विपरीत कोयल किसी को कोई धन नहीं दे देती, लेकिन वो फिर भी सबको पसंद आती है। दोनों का रूप रंग एक समान है, फिर भी कौवे को कोई पसंद नहीं करता जबकि कोयल को सब पसंद करते हैं। इसका कारण दोनों के गुणों में अंतर है। कौवा जहां अपने कर्कश और तीखे स्वर की वजह से लोगों को पसंद नहीं आता, वहीं कोयल मीठी आवाज की वजह से सबके मन को मोह लेती है। इसीलिए आंतरिक गुण सबसे महत्वपूर्ण हैं। किसी व्यक्ति के गुण के कारण ही लोग उसे पसंद करते हैं, रंग-रुप इतना महत्व नहीं करता।
कबीर कहते हैं कि जैसे सूप अनाज को साफ करता है अर्थात वह अनाज में से बेकार चीजो को हवा में उड़ा कर अलग कर देता है, उपयोगी अनाज को ही साथ रखता है। उसी प्रकार सज्जन व्यक्तियों का स्वभाव भी ऐसा होता है। वह व्यर्थ की सारहीन बातों को महत्व नही देते, जबकि अर्थपूर्ण बातों को स्वयं में समाहित कर लेते हैं। सज्जन पुरुषों का स्वभाव सूप की तरह ही होना चाहिए और केवल काम की बातों को ध्यान में रखकर फालतू बातों पर ध्यान नहीं देना चाहिए।
मुझे आशा है कि आप कोई मदद मिलेगी