Hindi, asked by kartik75871, 8 months ago

कागा काको धन हरै, कोयल काको देत।
मीठे बोल सुनाय के, जग अपना कर लेत।।
साधु ऐसा चाहिए, जैसा सूप
सुभाय।
सार-सार को गहि रहै, थोथा देइ उड़ाय।।
-कबीर
चाह गई चिंता मिटी मनुआ
मनुआ बेपरवाह।
जिनको कछु न चाहिए, वे साहन के साह।।
जे गरीब परहित करें, ते रहीम बड़ लोग।
कहा सुदामा बापुरो, कृष्ण मिताई जोग।।
रहिमन ओछे नरन सौं, बैर भली न प्रीति।
काटे चाटे स्वान के, दोऊ भाँति विपरीत।।
--रहीम
नीकी पै फीकी लगै, बिन अवसर की बात।
जैसे बसत युद्ध में, रस शृंगार न सुहात।।
अपनी पहुँचि बिचारि कै, करतब करिए दौर।
तेते पाँव पसारिए, जेती लांबी सौर॥
कारज धीरे होतु है, काहे होत अधीर।
समय पाय तरुवर फलै, केतक सींचौ नीर।।
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Answered by akbarhussain26
2

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what's your question OK bye

Answered by gupthabhargav76
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Explanation:

कागा काको धन हरै, कोयल काको देत।

मीठे बोल सुनाय के, जग अपना कर लेत।।

साधु ऐसा चाहिए, जैसा सूप

सुभाय।

सार-सार को गहि रहै, थोथा देइ उड़ाय।।

-कबीर

चाह गई चिंता मिटी मनुआ

मनुआ बेपरवाह।

जिनको कछु न चाहिए, वे साहन के साह।।

जे गरीब परहित करें, ते रहीम बड़ लोग।

कहा सुदामा बापुरो, कृष्ण मिताई जोग।।

रहिमन ओछे नरन सौं, बैर भली न प्रीति।

काटे चाटे स्वान के, दोऊ भाँति विपरीत।।

--रहीम

नीकी पै फीकी लगै, बिन अवसर की बात।

जैसे बसत युद्ध में, रस शृंगार न सुहात।।

अपनी पहुँचि बिचारि कै, करतब करिए दौर।

तेते पाँव पसारिए, जेती लांबी सौर॥

कारज धीरे होतु है, काहे होत अधीर।

समय पाय तरुवर फलै, केतक सींचौ नीर।।

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