Hindi, asked by ranjeetchauhan52226, 3 months ago

(क) गाँधीजी किस तरह के सामंजस्य को भारत के लिए बेहतर मानते हैं और क्यों ?
(ख)​

Answers

Answered by piyushsharm31
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hii mate

महात्मा गांधी की मूलतः गुजराती में लिखी पुस्तक हिन्द स्वराज्य हमारे समय के तमाम सवालों से जूझती है। महात्मा गांधी की यह बहुत छोटी सी पुस्तिका कई सवाल उठाती है और अपने समय के सवालों के वाजिब उत्तरों की तलाश भी करती है। सबसे महत्व की बात है कि पुस्तक की शैली। यह किताब प्रश्नोत्तर की शैली में लिखी गयी है। पाठक और संपादक के सवाल-जवाब के माध्यम से पूरी पुस्तक एक ऐसी लेखन शैली का प्रमाण जिसे कोई भी पाठक बेहद रूचि से पढ़ना चाहेगा। यह पूरा संवाद महात्मा गांधी ने लंदन से दक्षिण अफ्रीका लौटते हुए लिखा था। 1909 में लिखी गयी यह किताब मूलतः यांत्रिक प्रगति और सभ्यता के पश्चिमी पैमानों पर एक तरह हल्लाबोल है। गांधी इस कल्पित संवाद के माध्यम से एक ऐसी सभ्यता और विकास के ऐसे प्रतीकों की तलाश करते हैं जिनसे आज की विकास की कल्पनाएं बेमानी साबित हो जाती हैं।

Answered by Jasleen0599
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गाँधीजी किस तरह के सामंजस्य को भारत के लिए बेहतर मानते हैं |

  • गांधी इसे विभिन्न संस्कृतियों के बेहतर सामंजस्य के रूप में देखते हैं जो मूल प्रकृति का है और जिसमें विभिन्न संस्कृतियों का स्थान सुरक्षित रहेगा। गांधीजी चरित्र निर्माण को शिक्षा का लक्ष्य मानते थे।
  • उनके अनुसार शिक्षा के माध्यम से व्यक्ति में साहस, बल और सदाचार जैसे गुणों का विकास करना चाहिए क्योंकि चरित्र निर्माण से ही सामाजिक उत्थान होगा। समाज को संगठित करने का कार्य एक साहसी और सदाचारी व्यक्ति के हाथों में आसानी से सौंपा जा सकता है।
  • गांधीजी विभिन्न संस्कृतियों के सामंजस्य को भारत के लिए बेहतर मानते थे क्योंकि विभिन्न संस्कृतियों के सामंजस्य ने भारतीय जीवन को प्रभावित किया और स्वयं भारतीय जीवन से प्रभावित थे। यह समरसता मूल प्रकृति की होगी और प्रत्येक संस्कृति अपना उचित स्थान सुरक्षित कर लेगी। गांधीजी का मानना ​​था कि किसी भी भाषा के विचारों और ज्ञान को स्थानीय भाषाओं में अनुवाद द्वारा आसानी से आत्मसात किया जा सकता है।
  • अपनी मातृभाषा के माध्यम से अंग्रेजी या दुनिया की अन्य भाषाओं में उपलब्ध ज्ञान प्राप्त करना आसान है। सभी भाषाओं के ज्ञान को समझने के लिए अनुवाद की कला अनिवार्य है। इसलिए बड़े पैमाने पर इसकी जरूरत है।
  • गांधी जी के विचार के अनुसार हम अपनी मातृभाषा को माध्यम बनाकर अपार विकास प्राप्त कर सकते हैं। अपनी संस्कृति से जीवन में तीव्र गति से उत्थान प्राप्त किया जा सकता है। लेकिन क्रांतिकारी मांडूक न बनें। दूसरी संस्कृति की अच्छी बातों को स्वीकार करने में संकोच न करें। बल्कि अपनी संस्कृति और भाषा को आधार बनाकर अन्य भाषाओं और संस्कृतियों को अपने जीवन में समाहित करें।

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