कागहि कहा कपूर खवाये, स्वान न्हवाये गंग
खर को कहा अरगजा लेपन, मरकत भूषन अंग।
पाहन पतित बान नहिं भेदत, रीतो करत निषंग
सूरदास खल कारी कामरी, चदै न दूजो रंग।।
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sandharb likhiye aur saparasan wakhiya karo
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