कागज की कश्ती थी, पानी का किनारा था। खेलने की मस्ती थी, यह दिल भी आवारा था। कहाँ आ गए हम इस समझदारी के दलदल में, वो नादान बचपन भी कितना प्यारा था। who like this please follow me.
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दोस्तों आज के इस लेख में हम आपके लिए गांव की बचपन की यादें लेकर आए हैं। गांव की ऐसी बचपन की यादें आपको और कहीं नहीं मिलेंगी। उम्मीद है आपको हमारे गांव की बचपन की यादें पसंद आएंगी।
वह कुआँ जिससे वे पानी निकालते थे,
ढह गया होगा
नदी के किनारे जो घर बने थे,
उड़ गया होगा
दूर है मेरा बचपन का गाँव,
छोड़ दिया होगा
खेतों में जाओ और घास काटो,
घर में कुट्टी काटना,
उस दिन आपदाएँ आती थीं।
जीवन में लालच कितना बढ़ गया है,
बचपन की यादें अब याद नहीं आती।
वक्त से पहले वो हमसे खफा है,
बचपन की मासूमियत न जाने कहाँ चली गई।
एक काश खुदा करे मुझको सच्चा,
मुझे मेरा बचपन लौटा दो, मुझे बच्चा बना दो।
शौक अब जिंदगी की जरूरत बन गए हैं।
शायद हम बचपन से आगे बड़े हो गए हैं।
जब हम छोटे बच्चे थे,
अक्ल से थोड़े कच्चे थे,
पर दिल के सच्चे,
हम जैसे थे वैसे ही बहुत अच्छे थे।
मेरा बचपन मेरे सपनों की तरह बीता,
मैं चाँद को देख कर सोता था,
यह मेरा भी एक सपना था।
वक्त से पहले वो हमसे खफा है,
बचपन की मासूमियत न जाने कहाँ चली गई।
पंछियों को अब ताजी हवा में उड़ने दो,
फिर बचपन के दिन वापस नहीं आते।
बचपन कितना प्यारा होता है
जिसमें मन हमेशा खिलाता है,
सारा दिन खेलकूद में बीतता है,
और रातें तारे गिन-गिन कर बीत जाती हैं।
बस मेरी ही धुन, बस मेरे सपनों का घर,
काश वो बचपन का पल फिर से मिल पाता।
जिस दिन छुट्टी होगी। ले चल मुझे बचपन की उन्हीं वादियों में ऐ ज़िंदगी,
जहां न कोई "जरूरत" थी और न किसी की जरूरत थी।
जब दर्द से तड़पती है ये ज़िन्दगी,
अपने प्यारे बचपन को याद करो
बचपन की यादें दवा के रूप में
दुख के क्षण तुम्हें पीड़ा से मुक्त कर देंगे।
मेरे रोने की कहानी जिसके पास है,
उम्र सबसे अच्छा हिस्सा है।
ना कुछ पाने की उम्मीद ना कुछ खोने का डर,
काश वो बचपन का पल फिर से मिल पाता।
ये दौलत भी ले लो, ये शोहरत भी ले लो,
मेरी जवानी मुझसे छीन लो
पर बचपन का सावन लौटा दो,
वो कागज़ की कश्ती, वो बारिश का पानी।
वह बचपन कैसा था?
न थी कोई चिंता, न कोई झंझट,
यह सिर्फ यादों का त्योहार था।
और खेलते रहना था।
हम झूठ बोलते थे, फिर भी हम इतने सच्चे थे,
बात उन दिनों की है जब हम बच्चे थे।
बचपन कुछ और था।
जब ज़ख्म दिल पर नहीं हाथ पैरों पर लगे थे।
अब जरा सी चोट पर रोते हैं,
जो बचपन में ऊंचे पेड़ों से पलते थे
वह गिरते ही संभल जाता था।
जब भी मौका मिलता है बच्चों के साथ
समय बिताएं क्योंकि उनके साथ,
खुद का बचपन भी लौट आता है।
बचपन की कहानी याद नहीं
बातें वो पुरानी यादें नहीं,
माँ की गोद का ज्ञान है,
लेकिन वह नींद आध्यात्मिक स्मरण नहीं है।
बचपन में हम हंसते और रोते थे,
अब तो हालात ऐसे हैं कि हंसते-हंसते रो पड़ते हैं।
बचपन से लेकर जवानी तक हम सीढ़ियां ऐसे ही चढ़ते हैं।
मेरा बचपन भी ले आया,
गांव से जब भी कोई आता था।
बचपन के दिन कितने अच्छे थे
तब खिलौने सिर्फ दिल ही नहीं तोड़ते थे,
अब एक आंसू भी बर्दाश्त नहीं होता।
और बचपन में बहुत रोया करते थे।
आओ बारिश में भीग जाएं
उस बचपन में खो जाओ
क्यों आये हो इस डिग्री की दुनिया में,
चलो फिर से कागज की नाव बनाते हैं।
काश हमारा बचपन लौट आता
जिसमें जीवन आसान था,
अब आते हैं समझने की दुनिया में,
जीवन को और कठिन बना दिया।
वो बचपन भी क्या था, जब दो रुपये से जेब भरते थे,
वो भी क्या जमाना था जब रो रो कर हम दर्द भूल जाते थे।
मेरा बचपन भी हसीन हुआ करता था,
न कल की चिंता थी और न आज की मंजिल।
बचपन की तरह जिंदगी फिर कभी मुस्कुराई नहीं,
मैंने मिट्टी भी इकट्ठी की और खिलौनों से कोशिश की।
पंछियों को अब ताजी हवा में उड़ने दो,
फिर "बचपन" के दिन वापस नहीं आते।
आपकी कुछ हरकतें,
तो कुछ तेरी मासूमियत,
मैंने उन्हें चोट पहुंचाई
कुछ बूढ़े और कुछ बड़े,
बचपन से ऐसे ही मेरी उनसे मुलाकात हुई थी।
कोन बंधे हैं, वियर बंधे हैं,
नहर का पानी लाना।
घर आकर फिर करता था,
मवेशियों को पानी पिलाना।
क्या खाऊं, कहां जाऊं
कोई नहीं जानता था
जहां दोस्त गए, वहां मुझे जाना पड़ा।
बचपन का वह दौर क्या था?
ईमान बेचकर बेईमानी खरीदी,
बचपन बेचकर यौवन खरीद रहे हैं
न समय, न खुशी, न शांति,
मुझे लगता है कि आपने किस तरह का जीवन खरीदा है।
फ़रिश्ते आते हैं और बदन पर ख़ुश्बू लगाते हैं,
वो बच्चे जो रेलवे कोच में झाडू लगाते हैं।
मुझे सिटी वाटर पार्क नहीं चाहिए,
न ही उनके कृत्रिम झूले,
आज जरूरत है गांव के आम के पेड़ की।
जो हमें बुलाता है
अपना हाथ ऊपर उठाएं और कहें कि आओ और इसे छू लो।
कितने "आसान" थे बचपन के वो दिन, जहाँ,
दो उँगलियाँ मिलाने से ही दोस्ती हो जाती थी।
बचपन में सभी खुश रहते हैं क्योंकि,
क्योंकि मां ही बच्चे की पूरी दुनिया होती है।
जिंदगी ने लिया अजीब मोड़,
जब एक ही बच्चे के लिए इस दुनिया में एक मां होती है।
कितनी खूबसूरत हुआ करती थी
बचपन के वो दिन,
बस दो अंगुलियों को जोड़कर,
दोस्ती फिर से शुरू हो जाती थी।
बचपन के दिन कितने अच्छे थे
तब खिलौने सिर्फ दिल ही नहीं तोड़ते थे,
अब एक आंसू भी बर्दाश्त नहीं होता।
और बचपन में बहुत रोया करते थे।
बचपन शानदार था
खेलते समय आप छत पर सो सकते हैं,
या फिर जमीन पर पलंग पर ही आंखें खुल जाती थी।
बचपन को कौन भूलना चाहता है,
क्योंकि सभी को बहुत पसंद है,
मुझे वो मीठे और खट्टे पल याद हैं
जब हम बिना किसी छल कपट के रहते थे।
हमारा बचपन बहुत देर तक उन पर हंसता रहा,
जब अनुभव आपको गंभीर बनाने आए।
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