Hindi, asked by Ahadshaikh786, 4 months ago

कागद काले करि मुए, केते बेद पुरान ।
एकै आखर पीव का, दादू पढ़े सुजान ।। is per kalpanavistaratmak nibandh likhie hindi me long essay in hindi

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Answered by Anonymous
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Answer:

Explanation:

मेरे मन भैया राम कहौ रे / दादू दयाल

मेरे मन भैया राम कहौ रे॥टेक॥

रामनाम मोहि सहजि सुनावै।

उनहिं चरन मन कीन रहौ रे ॥१॥

रामनाम ले संत सुहावै।

कोई कहै सब सीस सहौ रे॥२॥

वाहीसों मन जोरे राखौ।

नीकै रासि लिये निबहौ रे॥३॥

कहत सुनत तेरौ कछू न जावे।

पाप निछेदन सोई लहौ रे॥४॥

दादू जन हरि-गुण गाओ।

कालहि जालहि फेरि दहौ रे॥५॥

बिरहणि कौं सिंगार न भावै / दादू दयाल

बिरहणिकौं सिंगार न भावै।

है कोइ ऐसा राम मिलावै॥टेक॥

बिसरे अंजन-मंजन, चीरा।

बिरह-बिथा यह ब्यापै पीरा॥१॥

नौ-सत थाके सकल सिंगारा।

है कोइ पीड़ मिटावनहारा॥२॥

देह-गेह नहिं सुद्धि सरीरा।

निसदिन चितवत चातक नीरा॥३॥

दादू ताहि न भावत आना।

राम बिना भई मृतक समाना॥४॥

तौलगि जिनि मारै तूँ मोहिं / दादू दयाल

राग: गौरी

तौलगि जिनि मारै तूँ मोहिं।

जौलगि मैं देखौं नहिं तोहिं॥टेक॥

इबके बिछुरे मिलन कैसे होइ।

इहि बिधि बहुरि न चीन्है कोइ॥१॥

दीनदयाल दया करि जोइ।

सब सुख-आनँद तुम सूँ होइ॥२॥

जनम-जनमके बंधन खोइ।

देखण दादू अहि निशि रोइ॥३॥

संग न छाँडौं मेरा / दादू दयाल

राग: गौरी

संग न छाँडौं मेरा पावन पीव।

मैं बलि तेरे जीवन जीव॥टेक॥

संगि तुम्हारे सब सुख होइ।

चरण-कँवलमुख देखौं तोहि॥१॥

अनेक जतन करि पाया सोइ।

देखौं नैनौं तौ सुं होइ॥२॥

सरण तुम्हारी अंतरि बास।

चरण-कँवल तहँ देहु निवास॥३॥

अब दादू मन अनत न जाइ।

अंतर बेधि रह्यो लौ लाइ॥४॥

ऐसा राम हमारे आवै / दादू दयाल

राग: गौरी

ऐसा राम हमारे आवै।

बार पार कोइ अंत पावै॥टेक॥

हलका भारी कह्या न जाइ।

मोल-माप नाहिं रह्या समाइ॥

किअम्त लेखा नहिं परिमाण।

सब पचि हार साध सुजाण॥२॥

आगौ पीछौ परिमित नाहीं।

केते पारिष आवहिं जाहीं॥३॥

आदि अंत-मधि लखै न कोइ।

दादू देखे अचरज होइ॥४॥

राम रस मीठा रे / दादू दयाल

राम रस मीठा रे, कोइ पीवै साधु सुजाण।

सदा रस पीवै प्रेमसूँ सो अबिनासी प्राण॥टेक॥

इहि रस मुनि लागे सबै, ब्रह्मा-बिसुन-महेस।

सुर नर साधू स्म्त जन, सो रस पीवै सेस॥१॥

सिध साधक जोगी-जती, सती सबै सुखदेव।

पीवत अंत न आवई, पीपा अरु रैदास।

पिवत कबीरा ना थक्या अजहूँ प्रेम पियास॥३॥

यह रस मीठा जिन पिया, सो रस ही महिं समाइ।

मीठे मीठा मिलि रह्या, दादू अनत न जाइ॥४॥

सोई सुहागनि साँच सिगार / दादू दयाल

सोई सुहागनि साँच सिगार।

तन-मन लाइ भजै भरतार॥टेक॥

भाव-भगत प्रेम-लौ लावै।

नारी सोई सुख पावै॥१॥

सहज सँतोष सील जब आया।

तब नारी नाह अमोलिक पाया॥२॥

तन मन जोबन सौपि सब दीन्हा।

तब कंत रिझाइ आप बस कीन्हा॥३॥

दादू बहुरि बियोग न होई।

पिवसूँ प्रीति सुहागनि सोई॥४॥

तब हम एक भये रे भाई / दादू दयाल

तब हम एक भये रे भाई।

मोहन मिल साँची मति आई॥टेक॥

पारस परस भये सुखदाई।

तब दूनिया दुरमत दूरि गमाई॥१॥

मलयागिरि मरम मिल पाया॥

तब बंस बरण-कुल भरग गँवाया॥२॥

हरिजल नीर निकट जब आया।

तब बूँद-बूँद मिल सहज समाया॥३॥

नाना भेद भरम सब भागा।

तब दादू एक रंगै रँग लागा॥४॥

इत है नीर नहावन जोग / दादू दयाल

इत है नीर नहावन जोग॥

अनतहि भरम भूला रे लोग॥टेक॥

तिहि तटि न्हाये निर्मल होइ॥

बस्तु अगोचर लखै रे सोइ॥१॥

सुघट घाट अरु तिरिबौ तीर॥

बैठे तहाँ जगत-गुर पीर॥२॥

दादू न जाणै तिनका भेव॥

आप लखावै अंतर देव॥३॥

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