(क) "हे भगवान! तब के लिए! इतना आयोजन! परम-पिता की इच्छा के
विरुद्ध इतना साहस! पिताजी क्या भीख न मिलेगी? क्या कोई हिन्दू
भू-पृष्ठ पर न बचो रह जायेगा, जो ब्राह्मण को दो मुट्ठी अन्न दे सके?
यह असम्भव है। फेर दीजिए पिताजी, मैं काँप रही हूँ--इसकी चमक
आँखों को अन्धा बना रही है।"
(1) उपर्युक्त गद्यांश के पाठ और लेखक का नाम बताइए।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(ii) इस गद्यांश में ममता की किस मनोवृत्ति को स्पष्ट किया गया है।
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"हे भगवान! तब के लिए! इतना आयोजन! परम-पिता की इच्छा के विरुद्ध इतना साहस! पिताजी क्या भीख न मिलेगी? क्या कोई हिन्दू भू-पृष्ठ पर न बचो रह जायेगा, जो ब्राह्मण को दो मुट्ठी अन्न दे सके? यह असम्भव है। फेर दीजिए पिताजी, मैं काँप रही हूँ--इसकी चमक आँखों को अन्धा बना रही है।"
(1) उपर्युक्त गद्यांश के पाठ और लेखक का नाम बताइए।
उत्तर : उपर्युक्त गद्यांश के पाठ का नाम ‘ममता’ और लेखक का नाम ‘जयशंकर प्रसाद’ हैं।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
उत्तर : लेखक कहते हैं कि जब ममता ने सोने के आभूषणों से भरा हुआ थाल देखा तो वह भौंचक्की रह गई और हैरानी के साथ अपने पिता से बोली कि आप किसी आने वाली विपत्ति के लिए इतना धन संग्रह क्यों कर रहे हैं। आपने यह जो भी कार्य किया है वह भगवान की इच्छा के विरुद्ध है। क्या इस पृथ्वी पर ऐसा कोई नही जो इस विधवा को आवश्यकता पड़ने पर भीख भी न देगा। फिर तो ये पृथ्वी हिंदुओं से विहीन हो जायेगी जो इस ब्राह्मण स्त्री को थोड़ा सा मुट्ठी अनाज भी न दे पायेगा।
(ii) इस गद्यांश में ममता की किस मनोवृत्ति को स्पष्ट किया गया है।
उत्तर : इस गद्यांश में ममता की धन के प्रति किसी भी तरह के लोभ ना करने की तथा ईश्वर के प्रति विश्वास अपने ब्राह्मणत्व के प्रति विश्वास तथा हिंदू पहचान के प्रति गर्व प्रकट करने वाली मनोवृत्ति का चित्रण किया गया है।
Answer:
prayog gadyansh ke paath aur lekhak ka naam bataiye