का
होगी,दर्द के गहरे कुये के तल मै कही पड़ी मुस्क
को धीरे-धीरे खींच कर ऊपर निकाल रहे होंगे की
मै ही क्लिक कर के फोटोग्राफर ने "बैंक
"कह
होगा।विचित्र है यह अधुरी मुस्कान। यह मुस्कान
इसमै उपहास है,व्यंग है।
यू
। साहित्यिक पुरखे किसे कहा गया है ? आप अपने पुरखो
केबारे मै क्या जानते हो ?
Answers
Answer:
sahitya purkhe unke purkho ko kha gya hai . main apne purkhe ke baare mein nahi janti .
Explanation:
मैं समझता हूं. तुम्हारी अंगुली का इशारा भी समझता हूं और यह व्यंग्य-मुस्कान भी समझता हूं.तुम मुझ पर या हम सभी पर हंस रहे हो, उन पर जो अंगुली छिपाये और तलुआ घिसाये चल रहे हैं, उन पर जो टीले को बरकाकर बाजू से निकल रहे हैं. तुम कह रहे हो - मैंने तो ठोकर मार-मारकर जूता फाड़ लिया, अंगुली बाहर निकल आयी, पर पांव बच रहा और मैं चलता रहा, मगर तुम अंगुली को ढांकने की चिंता में तलुवे का नाश कर रहे हो. तुम चलोगे कैसे?
मैं समझता हूं. मैं तुम्हारे फटे जूते की बात समझता हूं, अंगुली का इशारा समझता हूं, तुम्हारी व्यंग्य-मुस्कान समझता हूं!
प्रेमचंद के फटे जूते शीर्षक से हरिशंकर परसाई ने यह निबंध लिखा था. इसमें उन्होंने प्रेमचंद के व्यक्तित्व की सादगी के साथ एक रचनाकार की अंतर्भेदी सामाजिक दृष्टि का विवेचन भी किया है.